देश में पशुपालन और डेयरी क्षेत्र को मजबूत बनाने के लिए भारत सरकार ने राष्ट्रीय गोकुल मिशन की शुरुआत की है. यह योजना राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रयासों को सहयोग देती है. इसका मुख्य उद्देश्य स्वदेशी नस्लों का संरक्षण, मवेशियों की नस्लों का उन्नयन और दूध उत्पादन में सुधार करना है. यह मिशन 2014-15 से चल रहा है और अब तक इसने कई बड़े बदलाव लाए हैं.
दूध उत्पादन में रिकॉर्ड बढ़ोतरी
केंद्रीय मत्स्य एवं पशुपालन मंत्रालय के अनुसार 2014-15 में प्रति पशु प्रति वर्ष औसतन 1640 किलो दूध उत्पादन होता था, जो अब 2023-24 में बढ़कर 2072 किलो हो गया है. यह 26.34 फीसदी की वृद्धि है और यह दुनिया में सबसे तेज वृद्धि मानी जा रही है.
- देशी नस्लों के मवेशियों की उत्पादकता भी बढ़कर 1292 किलो/वर्ष हो गई है, जो पहले सिर्फ 927 किलो थी.
- भैंसों की उत्पादकता 1880 किलो से बढ़कर 2161 किलो हो गई है.
- कुल दूध उत्पादन 146.31 मिलियन टन से बढ़कर अब 239.30 मिलियन टन हो गया है.
कृत्रिम गर्भाधान से नस्लों में सुधार
50 प्रतिशत से कम कृत्रिम गर्भाधान कवरेज वाले जिलों में केंद्र सरकार ने पशुओं के लिए गर्भाधान सुधार कार्यक्रम शुरू किया है. इस योजना के तहत किसानों के घर तक जाकर मुफ्त में गर्भाधान सेवाएं दी जा रही हैं.
- अब तक 9.16 करोड़ पशुओं को इस कार्यक्रम में शामिल किया गया है.
- 14.12 करोड़ बार कृत्रिम गर्भाधान किया गया है.
- 5.54 करोड़ से ज्यादा किसानों को इसका लाभ मिला है.
देशी नस्लों के सांडों का चयन
गिर, साहीवाल, थारपारकर, कांकरेज जैसी देशी नस्लों के सांडों को वैज्ञानिक तरीकों से चुना जा रहा है। इन सांडों का वीर्य उच्च गुणवत्ता का होता है, जिससे नस्लों का स्तर सुधर रहा है.
- अब तक 4343 उच्च आनुवंशिक गुणधर्म वाले सांडों का उत्पादन किया गया है.
- इन्हें वीर्य केंद्रों में भेजा गया है ताकि देश भर के किसानों को इसका लाभ मिल सके.
आधुनिक तकनीक से नस्ल सुधार
गोकुल मिशन के तहत अब आईवीएफ (IVF), लिंग-छंटाई वीर्य और जीनोमिक चयन जैसी आधुनिक तकनीकों का उपयोग किया जा रहा है. इससे पशुओं की अगली पीढ़ी ज्यादा उत्पादक और स्वस्थ बन रही है.
- इससे नस्ल सुधार की गति तेज हुई है.
- अधिक दूध देने वाले पशु पैदा किए जा रहे हैं.
- खासकर देशी नस्लों के संरक्षण को बल मिल रहा है.
ग्रामीण युवाओं को प्रशिक्षण और रोजगार
इस योजना से न सिर्फ पशुपालकों को फायदा हो रहा है, बल्कि ग्रामीण युवाओं को भी रोजगार मिल रहा है. उन्हें गर्भसहायक के रूप में प्रशिक्षित किया जा रहा है.
- अब तक 38,736 तकनीशियनों को प्रशिक्षण देकर गांवों में नियुक्त किया गया है.
- ये तकनीशियन किसानों को घर पर ही सेवाएं दे रहे हैं.