Stubble Management : हर साल धान की कटाई के बाद खेतों में उठता धुएं का गुबार अब बीते दिनों की बात बन सकता है. पराली जलाने से न केवल वायु प्रदूषण बढ़ता है बल्कि मिट्टी की उर्वरता भी घटती है. लेकिन अगर आप चाहें तो इसी पराली को सोने जैसी उपजाऊ खाद में बदल सकते हैं. यह तरीका न सिर्फ पर्यावरण बचाएगा बल्कि किसानों को अतिरिक्त आमदनी भी देगा. चलिए जानते हैं पराली से खाद बनाने की आसान और कारगर विधि.
पराली जलाना क्यों है नुकसानदायक?
पराली जलाने से हवा में जहरीला धुआं फैलता है जो लोगों के स्वास्थ्य के लिए खतरा बनता है. इसके अलावा, मिट्टी के अंदर मौजूद सूक्ष्म जीव और केंचुए मर जाते हैं, जिससे भूमि की उर्वरता कम हो जाती है. लगातार ऐसा करने से खेत बंजर होने लगते हैं और किसानों को उर्वरक पर अधिक खर्च करना पड़ता है. इस कारण, पराली को जलाने के बजाय उसका उपयोग खाद बनाने में करना सबसे अच्छा विकल्प है.
पराली से खाद बनाना कितना आसान है
अगर किसान चाहें तो पराली को बिना जलाए घर पर ही प्राकृतिक खाद में बदल सकते हैं. इसके लिए किसी बड़े उपकरण या मशीन की जरूरत नहीं है. केवल एक साधारण ड्रम, थोड़ा पानी, गुड़, बेसन और बायो डी-कंपोजर से यह प्रक्रिया शुरू की जा सकती है. यह खाद तैयार होने में ज्यादा समय नहीं लेती और कुछ ही हफ्तों में खेतों के लिए तैयार हो जाती है.
ऐसे तैयार करें बायो डी-कंपोजर घोल
- एक ड्रम में लगभग 200 लीटर पानी भरें.
- उसमें आधा किलो गुड़ और आधा किलो बेसन डालें.
- फिर उसमें 20 ग्राम बायो डी–कंपोजर मिलाएं और अच्छी तरह चलाएं.
- इस मिश्रण को 2-3 दिनों तक रोज सुबह–शाम 5–10 मिनट चलाते रहें.
- तीन दिन बाद यह घोल पराली पर छिड़कने के लिए तैयार हो जाएगा.
यह घोल पराली के गलने की प्रक्रिया को तेज करता है और सूखे पौधों को पोषक तत्वों में बदल देता है.
खेत में ऐसे करें खाद तैयार
सबसे पहले खेत में पड़ी पराली को एक जगह इकट्ठा करें. फिर उसकी एक परत बनाकर तैयार बायो-डीकंपोजर घोल का छिड़काव करें. इसके ऊपर फिर पराली की एक और परत डालें और दोबारा घोल छिड़कें. इसी तरह कई परतें बनाते रहें. चाहें तो इसमें केंचुए भी डाल सकते हैं, जो पराली को जल्दी गलाने में मदद करेंगे. लगभग 15 से 20 दिनों में पराली पूरी तरह सड़कर पोषक जैविक खाद में बदल जाएगी, जिसे खेतों में इस्तेमाल किया जा सकता है.
खाद से अतिरिक्त कमाई का भी मौका
जब खाद पूरी तरह तैयार हो जाए, तो उसे छनकर साफ करें और धूप में अच्छी तरह सूखने दें. इसके बाद लगभग 30 किलो की बोरी में पैक करें. बाजार में इस जैविक खाद की कीमत करीब 10 रुपये प्रति किलो होती है, यानी एक बोरी 300 रुपये तक बिक सकती है. किसान इसे अपने खेतों में उपयोग कर मिट्टी की उर्वरता बढ़ा सकते हैं या बेचकर अतिरिक्त आय कमा सकते हैं. इससे पर्यावरण भी सुरक्षित रहेगा और कमाई का नया जरिया बनेगा.
पर्यावरण की रक्षा के साथ खेत भी होंगे उपजाऊ
इस विधि से किसानों को दोहरा फायदा होता है-एक ओर पर्यावरण प्रदूषण में कमी आती है, दूसरी ओर खेत की उर्वरता बढ़ती है. मिट्टी में जैविक तत्वों की मात्रा बढ़ने से अगली फसल की पैदावार अधिक होती है. वैज्ञानिक भी इसे पर्यावरण हितैषी और टिकाऊ कृषि की दिशा में एक बड़ा कदम मानते हैं.