Rabi crops 2025: साल का वो वक्त फिर आ गया है जब किसान अपनी मेहनत और उम्मीदों के साथ खेतों की ओर लौटते हैं. अक्टूबर से फरवरी तक चलने वाला रबी सीजन भारतीय कृषि का सबसे महत्वपूर्ण समय माना जाता है. खरीफ के बाद किसान अब ऐसी फसलों की तलाश में हैं जो कम जोखिम के साथ अधिक मुनाफा दें. इस बीच हाल में केंद्र सरकार ने रबी विपणन मौसम 2026-27 के लिए नई न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) सूची जारी की थी. इस बार सबसे ज्यादा चर्चा में तीन फसलें हैं–गेहूं, चना और सरसों. जहां गेहूं अब भी भरोसे की फसल है, वहीं चना और सरसों जैसे विकल्प किसानों को नई उम्मीदें दे रहे हैं. तो चलिए जानते हैं कौन सी फसल लगाने पर मिलेगा कितना फायदा.
गेहूं
भारत के किसान गेहूं को हमेशा “सुरक्षित निवेश” मानते आए हैं. इस बार सरकार ने गेहूं का एमएसपी 2,425 रुपये से बढ़ाकर 2,585 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया है. देखने में यह वृद्धि मामूली लग सकती है, लेकिन इसका असर गहरा है.
गेहूं की खासियत यह है कि इसकी मांग सालभर बनी रहती है और सरकारी खरीद का मजबूत ढांचा किसानों को बाजार के उतार-चढ़ाव से बचाता है. यदि किसी किसान की औसत लागत लगभग 28,000रुपये प्रति हेक्टेयर आती है और उसे 25 क्विंटल उपज मिलती है, तो वह करीब 36,000 रुपये से 40,000 रुपये तक का मुनाफा कमा सकता है. बेहतर सिंचाई और उर्वरक प्रबंधन के साथ यह लाभ और बढ़ सकता है. गेहूं इसलिए खास है क्योंकि यह किसी भी मौसम में बड़ा जोखिम नहीं उठाता. यही वजह है कि विशेषज्ञ इसे “रबी का नंबर वन” फसल मानते हैं.
चना और मसूर
रबी सीजन में किसानों के लिए दूसरा भरोसेमंद विकल्प है चना और मसूर जैसी दलहन फसलें. सरकार ने इस साल चना का एमएसपी 5,875 रुपये और मसूर का 7,000 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है. इन फसलों की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इन्हें ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती और ये मिट्टी की उर्वरता को भी बढ़ाती हैं.
कई इलाकों में जहां सिंचाई की कमी होती है, वहां चना की खेती सबसे उपयुक्त साबित होती है. इसके अलावा, भारत में दालों की खपत लगातार बढ़ रही है, जिससे इसका बाजार भी स्थिर बना हुआ है. मसूर की फसल ठंडे और शुष्क मौसम में अच्छा उत्पादन देती है और इसका उपयोग घरेलू रसोई से लेकर निर्यात तक में होता है. कुल मिलाकर, चना और मसूर ऐसी फसलें हैं जो कम लागत में स्थिर लाभ देती हैं और किसानों को मौसम की अनिश्चितता से सुरक्षा प्रदान करती हैं.
तिलहन फसलों में सुनहरा मौका
इस बार रबी फसलों में सबसे अधिक चर्चा सरसों की है. सरकार ने इसका एमएसपी बढ़ाकर 6,200 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया है. सरसों तिलहन श्रेणी की सबसे लोकप्रिय फसल है, खासकर राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में.
सरसों ठंडे और सूखे मौसम में अच्छी तरह पनपती है. यदि किसान सही सिंचाई प्रबंधन और रोग नियंत्रण अपनाएं तो एक हेक्टेयर में 12 से 18 क्विंटल तक उपज प्राप्त की जा सकती है. सरसों का तेल और बीज दोनों ही उच्च मांग में हैं, जिससे यह फसल नकद मुनाफे के लिहाज से बेहद आकर्षक बन गई है. सरकार भी तिलहन उत्पादन बढ़ाने पर विशेष ध्यान दे रही है, जिससे आने वाले सालों में सरसों किसानों के लिए एक बड़ा अवसर बन सकती है.
सब्जी फसलें
जिन क्षेत्रों में पानी की उपलब्धता अच्छी है, वहां किसान मटर, टमाटर, फूलगोभी जैसी सब्जी फसलों पर भी विचार कर सकते हैं. ये फसलें कम समय में तैयार हो जाती हैं और मंडी में अच्छे दाम दे सकती हैं. मसलन, मटर सिर्फ 80 से 100 दिन में तैयार हो जाती है और प्रति हेक्टेयर लगभग 80-100 क्विंटल उत्पादन देती है. सही बाजार मूल्य मिलने पर यह गेहूं से भी ज्यादा मुनाफा दे सकती है.
हालांकि सब्जी फसलों में जोखिम ज्यादा होता है क्योंकि इनके दाम मौसम और मांग के हिसाब से बदलते रहते हैं. इसलिए विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि किसान इन्हें पूरक फसल के रूप में अपनाएं, न कि मुख्य फसल के तौर पर.
खेती का नया फॉर्मूला
रबी सीजन 2025 किसानों के लिए एक नए अवसर का समय है. सरकार के नए एमएसपी ने साफ कर दिया है कि वह गेहूं, तिलहन और दलहन फसलों को प्राथमिकता देना चाहती है.
किसानों के लिए सबसे बुद्धिमानी भरा कदम यही होगा कि वे फसल विविधीकरण अपनाएं यानी एक ही खेत में एक से अधिक फसलें बोएं. गेहूं के साथ चना या मसूर को मिलाकर और सरसों जैसी नकद फसल को शामिल करके किसान अपनी आमदनी को कई गुना बढ़ा सकते हैं.