एक पल के लिए सोचिए….खेत खाली पड़े हैं, मिट्टी को कोई छू नहीं रहा, और कोई बीज नहीं बो रहा. हमारे सुबह के नाश्ते में दूध और सब्जियां नहीं हैं, बाजार से फल और अनाज गायब हैं. क्या होगा अगर किसान अचानक से खेती करना बंद कर दें? यह सिर्फ एक कल्पना नहीं, बल्कि हमारे जीवन की हकीकत को समझने का तरीका है. किसान सिर्फ खाना उगाते नहीं हैं, वे हमारी अर्थव्यवस्था, समाज और पर्यावरण की धुरी हैं. उनके बिना दुनिया की तस्वीर भयावह और चिंताजनक हो सकती है. तो चलिए समझते हैं कि बिन खेती हमें किन समस्यों का सामना करना होगा.
खाद्य संकट की शुरुआत
किसान अगर खेती छोड़ दें तो सबसे पहला असर हमें रोजमर्रा की जरूरतों में महसूस होगा. सुपरमार्केट और मंडियां खाली पड़ जाएंगी. फल, सब्जियां और अनाज दुर्लभ हो जाएंगे. जो चीजें बचेगी उनकी कीमत आसमान छूने लगेगी. चावल, गेहूं और मक्का जैसी बुनियादी वस्तुएं अमूल्य संसाधन बन जाएंगी, जिनके बिना करोड़ों लोग भूख और कुपोषण की चपेट में आएंगे.

खेती बंद होने से अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा बड़ा असर, फोटो क्रेडिट- pexels
अर्थव्यवस्था पर बड़ा झटका
खेती सिर्फ खाने के लिए नहीं होती, यह हमारे देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ भी है. जब किसान खेतों में काम करते हैं, तो सिर्फ अनाज और सब्जियां ही नहीं मिलतीं, बल्कि इससे जुड़ी कई नौकरियां और व्यवसाय भी चलते हैं. इसमें बीज और खाद बनाने वाली कंपनियां, कृषि उपकरण बनाने वाले, ट्रक और परिवहन वाले, मंडी और खाद्य प्रसंस्करण की फैक्ट्रियां शामिल हैं.
अगर किसान खेती करना बंद कर दें, तो ये सारी चीजें ठप हो जाएंगी. ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों के पास काम और आय का स्रोत खत्म हो जाएगा. इसका असर शहरों पर भी पड़ेगा क्योंकि शहरों में रहने वाले लोग भी खाने-पीने और रोजगार की कमी का सामना करेंगे.
सब्जियां, दाल, चावल, गेहूं और दूध जैसी रोजमर्रा की चीजें महंगी हो जाएंगी. महंगाई बढ़ेगी और लोगों की क्रय शक्ति कम होगी. साथ ही, ट्रक ड्राइवर, मंडी के मजदूर, थोक विक्रेता और फूड प्रोसेसिंग में काम करने वाले लोग भी बेरोजगार हो सकते हैं.

खेती बंद होने से बढ़ेंगे कुपोषण और मच्छरजनित बीमारियों के खतरे, फोटो क्रेडिट-mint
स्वास्थ्य और पोषण पर असर
ताजा और स्थानीय रूप से उगाए गए भोजन के बिना हमारे स्वास्थ्य पर भी गंभीर असर पड़ेगा. फल, सब्जियां और साबुत अनाज कम हो जाएंगे. लोग अधिकतर संसाधित और आयातित भोजन पर निर्भर होंगे, जिसमें पोषण और ताजगी की कमी होगी. इससे कुपोषण, डायबिटीज और अन्य जीवनशैली से जुड़ी बीमारियां बढ़ सकती हैं, खासकर बच्चों, बुजुर्गों और कमजोर इम्यून सिस्टम वाले लोगों में.
पर्यावरण की स्थिति बिगड़ सकती है
किसान सिर्फ भोजन उगाने तक सीमित नहीं हैं, वे हमारे पर्यावरण की भी देखभाल करते हैं. वे मिट्टी को उपजाऊ बनाते हैं, पानी का संतुलन बनाए रखते हैं और फसल चक्र से प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करते हैं. बिना किसानों के, खेत जर्जर हो सकते हैं, मिट्टी कटाव का शिकार होगी, जल प्रदूषण बढ़ेगा और रेगिस्तानीकरण का खतरा बढ़ जाएगा.

किसान के बिना खो जाएगी हमारी कृषि संस्कृति और ज्ञान, फोटो क्रेडिट- adobe stock
संस्कृति और ज्ञान की हानि
खेती सिर्फ रोजगार का जरिया नहीं है, बल्कि यह हमारी जीवन शैली और संस्कृति का हिस्सा भी है. पीढ़ियों से किसान अपने खेतों, मौसम और फसलों के बारे में गहन अनुभव और ज्ञान इकट्ठा करते आए हैं.
अगर किसान खेती छोड़ दें, तो यह अनमोल अनुभव और परंपराएं खो जाएंगी. ये वो चीजें हैं जिन्हें मशीनें या नई तकनीक कभी पूरी तरह नहीं सीख सकतीं. खेती के साथ जुड़ी कहानियां, रीति-रिवाज और स्थानीय ज्ञान भी धीरे-धीरे खत्म हो जाएंगे.
क्या तकनीक किसानों की जगह ले सकती है?
कुछ लोग सोच सकते हैं कि रोबोट, ऑटोमेशन और लैब में उगाया गया खाना किसानों की जगह ले सकता है. लेकिन वास्तविकता यह है कि तकनीक में वह संवेदनशीलता, अनुभव और प्यार नहीं होता जो किसान अपने खेत और फसल में रखते हैं. मौसम, मिट्टी की स्थिति और पौधों की सूक्ष्म जरूरतों को पहचानना मशीन के बस की बात नहीं है.
किसानों के बिना दुनिया की कल्पना हमें यह समझाती है कि वे सिर्फ भोजन ही नहीं देते, बल्कि हमारी अर्थव्यवस्था, समाज और पर्यावरण को भी बनाए रखते हैं. इसलिए हमें किसानों का सम्मान करना चाहिए, उनकी मदद करनी चाहिए और सुनिश्चित करना चाहिए कि अगली पीढ़ी भी खेती को अपनाए.