क्या पब्लिक ट्रांसपोर्ट में बसों की संख्या बढ़ने से कम होगा वायु प्रदूषण? जानें किस शहर में कैसी है यातायात व्यवस्था

'डबल द बस' अभियान के तहत देश के 10+ शहरों में लोगों ने पब्लिक ट्रांसपोर्ट सुधारने की मांग उठाई. भारत में प्रति लाख आबादी पर सिर्फ 24 बसें हैं, जबकि जरूरत 40-60 की है. अभियान का लक्ष्य ट्रैफिक, प्रदूषण कम करना और बेहतर यात्रा सुविधा देना है.

Kisan India
नोएडा | Updated On: 22 Sep, 2025 | 06:08 PM

Air Pollution: पंजाब- हरियाणा में धान की कटाई शुरू होने के साथ ही पराली जलाने के मामले सामने आने लगे हैं. इससे दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण का स्तर बिगड़े का खतरा फिर से बढ़ गया है. लेकिन शहर और वायु को प्रदूषित होने से रोकने के लिए लोगों का जागरूक किया जा रहा है. इसी कड़ी में दिल्ली समेत देश के 10 से ज्यादा शहरों में सोमवार को ‘विश्व कार-मुक्त दिवस’ को ‘डबल द बस’ अभियान के रूप में मनाया गया. इस मौके पर हजारों लोगों ने मांग की कि शहरों में चलने वाली बसों की संख्या दोगुनी की जाए, ताकि पब्लिक ट्रांसपोर्ट बेहतर हो सके. खास बात ये रही कि इस अभियान का नेतृत्व पूरी तरह आम नागरिकों ने किया. यह अभियान पहले से ही कई शहरों में चल रहा था. गुरुग्राम, बेंगलुरु, मुंबई, पुणे, नागपुर, चेन्नई, कोच्चि, तिरुवनंतपुरम, मलप्पुरम, जमशेदपुर, धनबाद जैसे शहरों में लोगों ने हाथों में ‘डबल द बस’ की तख्तियां लेकर बसों की संख्या बढ़ाने की मांग की. इसमें सिविल सोसायटी के सदस्य, बस मालिक और स्थानीय यात्री भी बढ़-चढ़कर शामिल हुए.

अभियान की तीन प्रमुख मांगे

  • पब्लिक बस सेवा के लिए बजट बढ़ाया जाए, ताकि हर शहर में ज्यादा बसें चलाई जा सकें
  • 2030 तक हर उस शहर में, जिसकी आबादी 10 लाख से ज्यादा है, बसों की संख्या कम से कम दोगुनी की जाए
  • सार्वजनिक परिवहन को सुरक्षित, सुविधाजनक और आधुनिक बनाया जाए, जिससे सभी लोगों को सम्मानजनक सफर का अनुभव मिल सके
  • इस अभियान का मकसद- भीड़ कम करना, ट्रैफिक घटाना और लोगों को बेहतर पब्लिक ट्रांसपोर्ट मुहैया कराना है

देश में दो लाख नई बसों की जरूरत

भारत में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मानकों की तुलना में बसों की संख्या जनसंख्या के अनुपात बहुत कम है. यहां प्रति एक लाख आबादी पर केवल 24 बसें हैं, जबकि 40 से 60 बसें होनी चाहिए. देश में सार्वजनिक क्षेत्र के परिवहन उपक्रम (एसटीयू) केवल 1.4 लाख बसें संचालित करते हैं. इनमें से भी लगभग एक-चौथाई बसें पुरानी और असुरक्षित हैं. इससे देश में दो लाख से ज्यादा बसों की कमी की है. इसमें लगभग 1.3 लाख बसें शहरी क्षेत्रों में कम हैं. पुणे के सिविल सोसायटी संगठन ‘परिसर’ की श्वेता वर्नेकर कहती हैं कि भारत को 2031 तक मौजूदा कमी तथा बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए 5.85 लाख चालू बसों की जरूरी होगी. हालांकि, खरीद के तौर-तरीकों पर नजर डालें तो केवल 3.38 लाख बसें ही उपलब्ध हो पाने का अनुमान है. ऐसा हुआ तो जरूरत के मुकाबले 2.46 लाख बसों का अंतर रह जाएगा. इस अंतर को तत्काल खत्म किया जाना चाहिए.

ई-बसों की संख्या बढ़ेगी

बसों पर ध्यान देना आज के समय की जरूरत बन गया है, क्योंकि ये शहरों के अंदर सफर का सबसे जरूरी और सुलभ जरिया हैं. कई शहरों में बसें मेट्रो से भी कई गुना ज्यादा यात्रियों को ढोती हैं. जैसे बेंगलुरु में बस से मेट्रो से 47 गुना अधिक और चेन्नई में 88 गुना ज्यादा लोग यात्रा करते हैं. इससे साफ है कि शहर के भीतर आने-जाने के लिए बसें ही असली रीढ़ हैं. दूसरी बात, बसें जलवायु के अनुकूल होती हैं और कारों पर निर्भरता कम करती हैं. लाखों लोग बसों से सफर करते हैं, जिससे सड़क पर गाड़ियों की संख्या घटती है, ट्रैफिक और प्रदूषण दोनों कम होते हैं. अब कई शहरों में इलेक्ट्रिक बसें भी तेजी से जुड़ रही हैं. जैसे दिल्ली में देश का सबसे बड़ा ई-बस बेड़ा चल रहा है और बेंगलुरु में 2025 तक 4,500 और ई-बसें आ जाएंगी.

मेट्रो या रेल से अच्छी बस सर्विस

तीसरी और सबसे बड़ी बात, बसें शुरू करना और उनका नेटवर्क बढ़ाना मेट्रो या रेल के मुकाबले काफी आसान और सस्ता होता है. बसों को जहां जरूरत हो वहां तैनात किया जा सकता है और समय के साथ रूट भी बदले जा सकते हैं. नीना सुब्रमणि, जो एक ट्रांसपोर्ट एक्सपर्ट हैं, कहती हैं कि आज भारत के शहर ट्रैफिक, असमानता और प्रदूषण जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं और इनका हल सिर्फ बसों के जरिए संभव है. इसलिए हमें बसों की संख्या दोगुनी करनी ही होगी, यह अब एक जरूरी कदम बन गया है.

 

Published: 22 Sep, 2025 | 06:03 PM

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