पंजाब, जिसे देश का “अन्न भंडार” कहा जाता है, इन दिनों भीषण बाढ़ की मार झेल रहा है. खेत-खलिहान से लेकर घर-आंगन तक पानी ही पानी नजर आ रहा है. आंकड़े बताते हैं कि राज्य के सभी 23 जिले इस आपदा से प्रभावित हैं, 1,400 से ज्यादा गांव पानी में डूब चुके हैं और करीब 3.5 लाख लोग बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं. तीन लाख एकड़ से ज्यादा खेती की जमीन जलमग्न हो चुकी है और किसानों की धान की फसल पूरी तरह बर्बाद हो गई है. हालात इतने गंभीर हैं कि मुख्यमंत्री भगवंत मान ने इसे “अभूतपूर्व संकट” करार दिया है.
लेकिन यह पहली बार नहीं है जब पंजाब ने ऐसी विनाशकारी बाढ़ देखी हो. दरअसल, राज्य का भूगोल, नदियों पर निर्भरता और बदलते मौसम के पैटर्न इसे बार-बार बाढ़ की चपेट में लाते हैं. आइए समझते हैं कि पंजाब का बाढ़ से रिश्ता इतना गहरा क्यों है और पिछले सात दशकों में यह राज्य कितनी बार तबाही झेल चुका है.
1955 की पहली बड़ी बाढ़
आजादी के कुछ ही साल बाद 1955 में पंजाब ने पहली बड़ी बाढ़ देखी. लगातार हुई भारी बारिश से घग्गर और सतलुज नदियां उफान पर आ गईं. मालवा क्षेत्र सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ और हजारों एकड़ कृषि भूमि डूब गई. उस समय जल निकासी की व्यवस्था बेहद कमजोर थी, जिसकी वजह से पानी कई दिनों तक गांवों में भरा रहा. यह पंजाब के लिए पहला संकेत था कि अगर नदियों और बारिश पर नियंत्रण नहीं किया गया तो हर साल तबाही मच सकती है.

3.5 लाख से ज्यादा लोग प्रभावित, धान और पशुधन को भारी नुकसान, फोटो क्रेडिट-bhaskar
1978 में सतलुज का प्रकोप
1978 में पंजाब ने एक और भयावह बाढ़ का सामना किया. हिमाचल और पंजाब में भारी बारिश के बाद भाखड़ा डैम से पानी छोड़ा गया. सतलुज और उसकी सहायक नदियां उफन पड़ीं. इसी दौरान ब्यास नदी में भी पानी का दबाव बढ़ा, जिससे पंजाब के कई जिले जैसे लुधियाना, फरीदकोट और कपूरथला डूब गए. घग्गर नदी का उफान हरियाणा और दिल्ली तक असर छोड़ गया.
1988-पंजाब के इतिहास की सबसे बड़ी त्रासदी
1988 की बाढ़ को पंजाब के इतिहास की सबसे विनाशकारी बाढ़ माना जाता है. महज चार दिनों में 634 मिमी बारिश दर्ज की गई. भाखड़ा और पोंग डैम से पानी छोड़े जाने के बाद पूरे पंजाब में तबाही मच गई. करीब 34 लाख लोग प्रभावित हुए, 9,000 गांवों में पानी घुस गया और 2,500 से ज्यादा गांव पूरी तरह डूब गए. लगभग 600 लोगों की मौत हुई और लाखों हेक्टेयर फसल बर्बाद हो गई. धान की कटाई के समय आई इस बाढ़ ने किसानों को पूरी तरह तोड़ दिया.
1993 में भूस्खलन और नदियों का उफान
1993 में भीषण बारिश और भूस्खलन के कारण सतलुज, ब्यास, रावी और घग्गर नदियों का जलस्तर अचानक बढ़ गया. कई जिले डूब गए और 350 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई. करीब 12 लाख एकड़ फसल बर्बाद हुई और रेलवे, सड़कें और पुल ध्वस्त हो गए. ग्रामीण इलाकों का संपर्क पूरी तरह टूट गया.

राज्य में बाढ़ से बिगड़े हालात का जायजा लेते मुख्यमंत्री भगवंत मान, फोटो क्रेडिट-moneycontrol
2008 और 2019- डैम से छोड़े पानी ने बढ़ाई मुसीबत
2008 में भी डैम से छोड़े गए पानी ने पंजाब के गांवों और खेतों को तबाह कर दिया. वहीं 2019 में अगस्त महीने की बारिश के बाद पंजाब सरकार को इसे “प्राकृतिक आपदा” घोषित करना पड़ा. रूपनगर, जालंधर और फिरोजपुर जैसे जिलों में सैकड़ों गांव पानी में डूब गए. करीब 1.7 लाख एकड़ फसल बर्बाद हुई और नुकसान का आंकड़ा 1,700 करोड़ रुपये से ऊपर चला गया.
2023 में फिर टूटा भरोसा
2023 में पंजाब को एक बार फिर बाढ़ का बड़ा झटका लगा. 10 जिलों के 1,400 से ज्यादा गांव पानी में डूब गए. हिमाचल में हुई रिकॉर्ड बारिश का सीधा असर पंजाब की नदियों पर पड़ा. करीब 2.21 लाख हेक्टेयर जमीन डूब गई और 38 लोगों की जान चली गई. इस बार भी सरकार को केंद्र से बड़ी राहत राशि नहीं मिल सकी, जिससे किसानों का गुस्सा भड़क उठा.
2025 की वर्तमान तबाही
इस साल यानी 2025 में स्थिति और भी गंभीर हो गई है. अगस्त में सामान्य से 74 फीसीदी ज्यादा बारिश हुई यानि पिछले 25 सालों में सबसे ज्यादा. भाखड़ा, पोंग और रणजीत सागर डैम से छोड़े गए पानी ने सतलुज, ब्यास और रावी का जलस्तर खतरनाक बना दिया. अब तक 30 लोगों की मौत हो चुकी है और तीन लोग लापता हैं. लगभग 20,000 लोगों को सेना और एनडीआरएफ ने सुरक्षित निकाला है. राज्यभर में 129 राहत शिविर बनाए गए हैं और स्कूल-कॉलेज बंद कर दिए गए हैं.
मुख्यमंत्री भगवंत मान ने केंद्र से 60,000 करोड़ रुपये की राहत राशि की मांग की है. किसानों ने भी तात्कालिक मुआवजे की गुहार लगाई है क्योंकि धान की पूरी फसल पानी में समा चुकी है.

बारिश और बांधों से छोड़ा गया पानी बना तबाही की वजह, फोटो क्रेडिट- mint
क्यों बार-बार डूबता है पंजाब?
विशेषज्ञों का मानना है कि पंजाब में बार-बार बाढ़ आने की कई वजहें हैं:
नदियों पर निर्भरता-सतलुज, ब्यास, रावी और घग्गर जैसी नदियां हर साल बारिश में उफान पर आ जाती हैं.
जलवायु परिवर्तन-अब बारिश अचानक और बहुत ज्यादा होती है, जिससे नदियां और डैम संभाल नहीं पाते.
खराब निकासी व्यवस्था-पंजाब की सपाट जमीन और नालों पर अतिक्रमण की वजह से पानी निकल नहीं पाता.
डैम से अचानक पानी छोड़ना-भाखड़ा, पोंग और रंजीत सागर डैम से अचानक छोड़ा गया पानी बाढ़ को और खतरनाक बना देता है.
फसल बीमा की कमी-किसानों के पास बर्बादी से उबरने का कोई ठोस साधन नहीं है.
अन्न भंडार की सुरक्षा पर खतरा
पंजाब की बाढ़ सिर्फ किसानों की आजीविका पर असर नहीं डालती बल्कि पूरे देश की खाद्य सुरक्षा पर भी सवाल खड़े करती है. धान और गेहूं उत्पादन में पंजाब की अहम भूमिका है. लगातार बाढ़ से न सिर्फ खेत और फसलें बर्बाद होती हैं, बल्कि ग्रामीण बुनियादी ढांचा और पशुधन भी बुरी तरह प्रभावित होते हैं.
अब सवाल यही है कि क्या सरकार और प्रशासन मिलकर ऐसी स्थायी योजना बना पाएंगे जिससे पंजाब हर साल बाढ़ से न डूबे? क्योंकि अगर समाधान जल्द नहीं निकला, तो “भारत के अन्न भंडार” की पहचान खतरे में पड़ सकती है.
रिपोर्ट- प्रतिभा सारस्वत