पाम की खेती से घट सकती है भारत की तेल आयात निर्भरता, किसान आय में भी होगा सुधार

इस नई पहल से न केवल घरेलू उत्पादन बढ़ेगा, बल्कि त्योहारों और बढ़ती खपत के समय आयात पर दबाव भी कम होगा. अगर यह योजना सही तरीके से लागू की गई, तो 2047 तक देश अपनी तेल पाम की जरूरत का लगभग आधा हिस्सा खुद उत्पादन से पूरा कर सकता है.इस नई पहल से न केवल घरेलू उत्पादन बढ़ेगा, बल्कि त्योहारों और बढ़ती खपत के समय आयात पर दबाव भी कम होगा. अगर यह योजना सही तरीके से लागू की गई, तो 2047 तक देश अपनी तेल पाम की जरूरत का लगभग आधा हिस्सा खुद उत्पादन से पूरा कर सकता है.

Kisan India
नई दिल्ली | Updated On: 27 Sep, 2025 | 09:45 AM

Palm Oil: भारत में खाद्य तेल की मांग लगातार बढ़ती जा रही है, लेकिन देश का घरेलू उत्पादन केवल मामूली हिस्सा ही पूरा कर पाता है. ऐसे में भारत दुनिया का सबसे बड़ा तेल पाम आयातक बन गया है. 2023 में भारत ने 8.9 मिलियन मीट्रिक टन तेल पाम आयात किया, जो वैश्विक आयात का 21 प्रतिशत है, जबकि घरेलू उत्पादन कुल मांग का केवल 5 प्रतिशत पूरा करता है. इसी चुनौती को देखते हुए विशेषज्ञों ने सुझाव दिया है कि देश को धान की लगभग 16.08 मिलियन हेक्टेयर सीमांत भूमि का उपयोग पाम की खेती के लिए करना चाहिए. इससे न केवल तेल उत्पादन बढ़ेगा बल्कि आयात पर निर्भरता भी कम होगी.

नई रणनीति और उत्पादन क्षमता

बिजनेस स्टैंडर्ड की खबर के अनुसार, श्वेत पत्र में कहा गया है कि अगर भारत तेल पाम की खेती में फोकस्ड रणनीति अपनाए और उत्पादन क्षमता को 2.4 टन प्रति हेक्टेयर से बढ़ाकर 4-5 टन प्रति हेक्टेयर किया जाए, तो 2047 तक देश अपनी आयात निर्भरता को लगभग 50 प्रतिशत तक कम कर सकता है. इसके लिए किसानों को प्रशिक्षण देना, बेहतर बीज और उन्नत तकनीक का इस्तेमाल करना जरूरी है.

सरकार और निजी क्षेत्र की भूमिका

विशेषज्ञों का मानना है कि पाम की खेती को सफल बनाने के लिए सरकार को ग्रामीण सड़कों, फ्रेश फ्रूट बंच (FFB) संग्रहण प्रणाली और प्रसंस्करण सुविधाओं में निवेश करना होगा. खासकर उत्तर-पूर्वी राज्यों में जहां अवसंरचना की कमी है, वहां यह कदम बेहद जरूरी है. साथ ही निजी क्षेत्र, जो देश के 82 बीज नर्सरी में से 69 और 32 प्रसंस्करण मिलों में से 26 का संचालन करता है, उसे और मजबूत करना होगा ताकि उत्पादन और प्रसंस्करण दोनों सुचारू रूप से चल सके.

अनुसंधान और सतत खेती

श्वेत पत्र में बताया गया है कि पाम की खेती को बेहतर बनाने के लिए भारतीय तेल पाम अनुसंधान संस्थान के क्षेत्रीय केंद्रों में अधिक अध्ययन और रिसर्च की जानी चाहिए. साथ ही, ऐसी खेती अपनानी चाहिए जो मिट्टी को नुकसान न पहुंचाए और लंबे समय तक फलदायक रहे. इससे मिट्टी की सेहत अच्छी रहेगी, वातावरण मजबूत होगा और छोटे किसान भी इस काम में शामिल होकर अपने लिए लाभ कमा सकेंगे.

आयात पर असर और भविष्य

इस नई पहल से न केवल घरेलू उत्पादन बढ़ेगा, बल्कि त्योहारों और बढ़ती खपत के समय आयात पर दबाव भी कम होगा. अगर यह योजना सही तरीके से लागू की गई, तो 2047 तक देश अपनी तेल पाम की जरूरत का लगभग आधा हिस्सा खुद उत्पादन से पूरा कर सकता है. यह कदम भारत को खाद्य तेल के मामले में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में बड़ा बदलाव साबित हो सकता है.

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Published: 27 Sep, 2025 | 08:16 AM

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