Chilli Production: भारत में इस खारिफ सीजन में मिर्च की खेती में काफी कमी देखने को मिली है. पिछले साल मिर्च के कमजोर दामों के कारण किसान अब मक्का, कपास और तंबाकू जैसी फसलों की ओर रुख कर रहे हैं. मुख्य मिर्च उत्पादन वाले राज्यों-आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक में क्षेत्रफल में 30 से 40 प्रतिशत तक की कमी दर्ज की गई है. इससे न केवल घरेलू बाजार में कीमतें बढ़ रही हैं, बल्कि नई फसल की आने में देरी के कारण मांग और भी बढ़ गई है.
मिर्च की फसल में कमी और बारिश का असर
बिजनेस लाइन की रिपोर्ट के अनुसार, गुंटूर स्थित चिल्ली एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष संबासिवा राव वेलागापुडी के अनुसार, “इस साल किसानों की मिर्च लगाने में रुचि नहीं रही क्योंकि पिछले साल उन्हें नुकसान हुआ था. आंध्र और तेलंगाना में क्षेत्रफल लगभग 40 प्रतिशत घटा है, जबकि कर्नाटक में यह 50 प्रतिशत तक गिर गया. इसके अलावा, कुछ इलाकों में ज्यादा बारिश ने फसल को प्रभावित किया और किसानों को फिर से रोपाई करनी पड़ी.”
बिगहाट एग्रो के जनरल मैनेजर संदीप वोड्डेपल्ली ने बताया कि देश के प्रमुख मिर्च उगाने वाले पांच राज्यों मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक में फसल का क्षेत्र घटा है. बयादगी, डब्बी और 5531 जैसी रंगाई वाली मिर्च की खेती में भी कमी आई है. कर्नाटक में बयादगी मिर्च का क्षेत्रफल 50 प्रतिशत तक घट गया.
मिर्च की कीमतों में तेजी
कम हुए क्षेत्रफल और नई फसल की देरी के कारण मिर्च की कीमतें बढ़ रही हैं. पिछले हफ्ते से ही कीमतों में बढ़ोतरी देखने को मिली है. जुलाई-अगस्त के मुकाबले अब स्थानीय मिर्च की कीमतों में लगभग 15 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. देशभर में नई फसल के आने में लगभग 25 दिन की देरी की संभावना है.
संबासिवा राव वेलागापुडी ने कहा, “मूल्य स्थिर रहने की संभावना है और आने वाले दिनों में नई फसल आने में देरी के कारण कीमतें मजबूत बनी रहेंगी. कोल्ड स्टोरेज में लगभग 1.5 करोड़ बैग मिर्च स्टॉक में हैं, जो पिछले साल के स्तर के समान है.”
निर्यात और वैश्विक मांग
चीन, जो भारत की सबसे बड़ी मिर्च खरीदार है, उसने पहले ही अधिक मात्रा में मिर्च खरीद ली है. इस साल चीन ने पिछले साल की तुलना में लगभग 5,000 कंटेनर ज्यादा खरीदे हैं. तेजा मिर्च की निर्यात मांग अपेक्षाकृत कम रही, इसलिए इसकी कीमतें अन्य किस्मों के मुकाबले कम बढ़ी हैं.
स्पाइसेस बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार, 2024-25 में भारत में लाल मिर्च का उत्पादन 26.93 लाख टन रहा, जबकि पिछले साल यह 29.09 लाख टन था. कुल क्षेत्रफल 9.21 लाख हेक्टेयर से घटकर 9.65 लाख हेक्टेयर हो गया.
किसानों और उपभोक्ताओं पर असर
किसानों की मिर्च उगाने की इच्छा कम होने और उत्पादन घटने से उपभोक्ताओं को महंगी मिर्च खरीदनी पड़ रही है. वहीं, किसानों की आमदनी पर भी असर पड़ा है क्योंकि कम उत्पादन के बावजूद उन्हें बाजार में उच्च कीमतों का लाभ पूरी तरह नहीं मिल रहा.
विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले दिनों में नई फसल के बाजार में आने के बाद कीमतों में स्थिरता आ सकती है, लेकिन इस साल के खरीफ में मिर्च क्षेत्रफल की कमी और वैश्विक मांग का दबाव कीमतों को लंबे समय तक ऊंचा बनाए रख सकता है.