अब सिर्फ गेहूं या दलहन ही नहीं, खेती में बदलाव का समय है. कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को सलाह दी है कि वे अपनी खेती में श्रीअन्न (मिलेट्स) को भी शामिल करें. इससे न केवल उत्पादन में बढ़ोतरी होगी, बल्कि किसानों की आमदनी दोगुनी हो सकती है. सरकार भी श्रीअन्न की खेती को बढ़ावा देने के लिए योजनाएं चला रही है.
गेहूं और दालों के साथ श्रीअन्न भी उगाएं
कृषि विज्ञान केंद्र, खिरिया मिश्र में आयोजित किसान मेले में वैज्ञानिकों और अधिकारियों ने कहा कि किसान अपनी जमीन का कम से कम 10 फीसदी हिस्सा श्रीअन्न की फसलों के लिए रखें. गेहूं और दालों के साथ ये मोटे अनाज भी उगाएं. श्रीअन्न यानी बाजरा, ज्वार, रागी, कोदो, सांवा, कुटकी जैसी फसलें होती हैं. इनकी खेती करने से जमीन की उर्वरता भी बनी रहती है और फसल को ज्यादा देखरेख की जरूरत नहीं होती.
क्या है श्रीअन्न और क्यों है ये फायदेमंद?
श्रीअन्न को अंग्रेजी में Millets कहा जाता है. ये मोटे अनाज हैं जो कम पानी, कम खाद और कम लागत में भी अच्छी पैदावार देते हैं. इन फसलों में फाइबर, प्रोटीन, आयरन और मिनरल्स की मात्रा ज्यादा होती है, इसलिए ये सेहत के लिए बहुत फायदेमंद हैं. कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि जलवायु परिवर्तन के समय में श्रीअन्न की खेती सबसे टिकाऊ विकल्प है. इससे कुपोषण की समस्या को भी दूर किया जा सकता है.
सरकारी योजनाओं से मिल रही है मदद
कार्यक्रम में मौजूद अधिकारियों ने किसानों को बताया कि राज्य और केंद्र सरकार द्वारा मिलेट्स पुनरोद्धार योजना के तहत श्रीअन्न की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है. इसके तहत किसानों को बीज मिनी किट, तकनीकी प्रशिक्षण, बाजार उपलब्धता और बिक्री में सहायता दी जा रही है. इसके अलावा, सोलर फेंसिंग योजना, फसल बीमा योजना और तिलहन-दलहन योजना जैसी कई और स्कीम भी किसानों के लिए चलाई जा रही हैं. सभी जानकारी के लिए नजदीकी कृषि विभाग से संपर्क किया जा सकता है.
महिलाएं भी जुड़ें श्रीअन्न से, खुले रोजगार के रास्ते
कार्यक्रम में यह भी बताया गया कि महिला स्वयं सहायता समूहों को श्रीअन्न के उत्पाद जैसे- बाजरा कुकीज, रागी लड्डू, मिलेट्स नमकीन आदि बनाने की ट्रेनिंग दी जाएगी. इनके लिए बाजार में स्टॉल लगाने की सुविधा भी दी जाएगी. इससे गांव की महिलाएं घर बैठे कमाई कर सकती हैं. राज्य सरकार चाहती है कि गांव-गांव में महिलाएं श्रीअन्न आधारित उत्पाद बनाएं और उन्हें बेचें, जिससे उनका आत्मनिर्भर भारत में योगदान बढ़े.
खेती का तरीका बदलें, कमाई और सेहत दोनों बढ़ाएं
कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि अब समय आ गया है जब किसान परंपरागत खेती के साथ-साथ नई तकनीक और फसलों को भी अपनाएं. श्रीअन्न की फसलें जल्दी तैयार होती हैं, ज्यादा खर्च नहीं आता और बाजार में मांग भी तेजी से बढ़ रही है. किसानों को चाहिए कि वे कृषि विभाग के अधिकारियों से जुड़कर नए बीज, प्रशिक्षण और बाजार की जानकारी हासिल करें. इस तरह किसान न केवल अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं, बल्कि देश की सेहत और पोषण में भी योगदान दे सकते हैं.