अब पौधे करेंगे गंदे पानी की सफाई, गांवों और शहरों में शुरू हुआ पर्यावरण मिशन

भारत में अब गंदे पानी को साफ करने के लिए पौधों की मदद ली जा रही है. कई ऐसे पौधे हैं जो अपनी जड़ों से पानी में मौजूद प्रदूषकों को सोख लेते हैं और उसे दोबारा उपयोग योग्य बना देते हैं. आइए जानते हैं कुछ ऐसे ही पौधो के बारे में...

Kisan India
नोएडा | Published: 28 Oct, 2025 | 11:34 AM

क्या आपने कभी सोचा है कि वही पौधे जो घर और बगीचे को सुंदर बनाते हैं, अब गंदे पानी को भी साफ कर सकते हैं? जी हां, अब काना इंडिका, डकवीड, जलकुंभी और कैटेल जैसे पौधे सिर्फ सजावट के लिए नहीं, बल्कि पानी को प्राकृतिक तरीके से शुद्ध करने के लिए इस्तेमाल किए जा रहे हैं. यह नई तकनीक गांवों और शहरों के लिए एक सस्ती और पर्यावरण के अनुकूल उम्मीद बनकर उभरी है.

पानी को प्राकृतिक तरीके से साफ करने वाली नई तकनीक

देश के कई हिस्सों में नालों और सीवरेज का गंदा पानी पर्यावरण के लिए बड़ी समस्या बन चुका है. इस चुनौती से निपटने के लिए वैज्ञानिकों ने ऐसी तकनीक विकसित की है, जिसमें पौधों की जड़ों के जरिए पानी में मौजूद प्रदूषक तत्वों को सोखा जाता है. काना इंडिका, डकवीड, जलकुंभी और कैटेल जैसे पौधों की खासियत यह है कि ये पानी में मौजूद हानिकारक रसायनों, गंदगी और जैविक पदार्थों को अपनी जड़ों से खींच लेते हैं. इससे पानी धीरे-धीरे साफ हो जाता है और दोबारा सिंचाई के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.

गांवों के लिए बनी उम्मीद की किरण

हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में इस तकनीक का सफल प्रयोग किया जा रहा है. यहां मनरेगा योजना के तहत गंदे पानी वाले इलाकों में इन पौधों को लगाया जा रहा है. इससे न सिर्फ गंदगी में कमी आई है, बल्कि ग्रामीणों को स्वच्छ वातावरण भी मिला है. इस योजना में स्थानीय लोगों को पौधे लगाने और उनकी देखभाल के लिए रोजगार भी मिल रहा है. यानी एक तीर से दो निशाने- पानी साफ और रोजगार का अवसर.

अब शहरों में भी बढ़ी मांग

अब यह तकनीक सिर्फ गांवों तक सीमित  नहीं रही. बड़े महानगरों में भी कई निजी कंपनियां इस मॉडल को अपनाने लगी हैं. सीवरेज ट्रीटमेंट और गंदे नालों के पानी को सिंचाई योग्य बनाने के लिए अब इन्हीं पौधों का उपयोग किया जा रहा है. मुंबई, पुणे और दिल्ली जैसे शहरों में यह तकनीक तेजी से लोकप्रिय हो रही है. इससे ना केवल पानी की बर्बादी रुक रही है, बल्कि पर्यावरणीय संतुलन भी बना हुआ है.

वैज्ञानिकों का कहना- सस्ती और प्रभावी तकनीक

महाराष्ट्र की लुण्ड्रा प्राइवेट लिमिटेड के वैज्ञानिक जॉय कुंदरू बताते हैं, “यह तकनीक न केवल पर्यावरण के लिए सुरक्षित है, बल्कि बेहद किफायती भी है. इन पौधों को उगाने में ज्यादा खर्च नहीं आता और ये बिना किसी रसायन के पानी को शुद्ध  करने में सक्षम हैं. उन्होंने कहा कि अब कई राज्य सरकारें इस मॉडल को अपनी स्वच्छता और ग्रामीण विकास योजनाओं में शामिल करने की दिशा में काम कर रही हैं. इससे ग्रामीण भारत में जल प्रबंधन की समस्या काफी हद तक कम हो सकती है.

भविष्य के लिए पर्यावरणीय समाधान

गंदे पानी को साफ करने की यह ग्रीन टेक्नोलॉजी भारत के लिए भविष्य की एक नई दिशा है. इससे न केवल सीवेज और नालों की समस्या का समाधान  होगा, बल्कि सिंचाई के लिए पानी की कमी भी दूर की जा सकेगी. काना इंडिका जैसे पौधे सजावटी और औषधीय गुणों से भरपूर हैं. इसलिए इनका उपयोग पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ सौंदर्य बढ़ाने में भी किया जा सकता है.

Get Latest   Farming Tips ,  Crop Updates ,  Government Schemes ,  Agri News ,  Market Rates ,  Weather Alerts ,  Equipment Reviews and  Organic Farming News  only on KisanIndia.in

अमरूद के उत्पादन में सबसे आगे कौन सा प्रदेश है?

Side Banner

अमरूद के उत्पादन में सबसे आगे कौन सा प्रदेश है?