भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान वाराणसी ने अब तक 33 सब्जी फसलों की 129 नई किस्में विकसित की हैं, जो जलवायु अनुकूल होने के साथ ही रोगों-कीटों से लड़ने में भी सक्षम हैं. इससे इन सब्जी किस्मों की बुवाई करने वाले किसानों की लागत और समय में बचत हुई है. जबकि, सब्जियों के उत्पादन में 12 गुना की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है. संस्थान में किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) संगम-25 कार्यक्रम में कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को किसानों को नई सब्जी किस्मों और बीज उत्पादन तकनीक के बारे में जानकारी दी. विशेषज्ञों का मानना है कि यदि किसान नई और उन्नत किस्मों को अपनाएं, तो उत्पादन और आय में काफी सुधार हो सकता है. इस मौके पर अधिकारियों ने किसानों को बीज प्रतिस्थापन, क्लस्टर डेवलपमेंट और एफ.पी.ओ. के महत्व पर विस्तार से जानकारी दी.
बीज प्रतिस्थापन से होगी उत्पादन में क्रांति
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि बी.एल. मीणा, ए.सी.एस. (उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण), उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा कि यह गोष्ठी सब्जी उत्पादन में नई क्रांति लाने का काम करेगी. उन्होंने बताया कि खेती में बीज प्रतिस्थापन की दर बहुत कम है और पुराने बीजों को नई किस्मों से बदलना समय की मांग है. उन्होंने यह भी कहा कि सरकार की क्लस्टर डेवलपमेंट योजना के तहत अब तक 125 उत्कृष्ठता केन्द्र स्थापित किए जा चुके हैं. विशिष्ट अतिथि डॉ. वी.एस. पांडेय ने सब्जियों के बीज उत्पादन में राष्ट्रीय बीज निगम, भा.कृ.अनु.प. और एफ.पी.ओ. के योगदान को विस्तार से बताया.
सब्जी बीज उत्पादन में नई किस्मों का लाभ

भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान
डॉ. वी.एस. पांडेय ने बताया कि मिर्च (काशी अनमोल) का बीज उत्पादन सिकंदराबाद में बड़े स्तर पर कराया जा रहा है. इसके अलावा मटर (काशी नंदनी, काशी उदय), लोबिया (काशी कंचन, काशी निधी), भिंडी (काशी लालिमा), पालक (काशी बारहमासी) और सतपुतिया (काशी खुशी) का बीज उत्पादन भी किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि यह नई किस्में किसानों की आय बढ़ाने में मदद करेंगी और उन्हें बेहतर उत्पादन के अवसर देंगी.
संस्थान के निदेशक ने साझा की प्रगति
संस्थान के निदेशक डॉ. राजेश कुमार ने कहा कि सब्जियों के क्षेत्रफल में 4 गुना, उत्पादकता में 3 गुना और उत्पादन में 12 गुना वृद्धि हुई है. उत्तर प्रदेश देश के कुल सब्जी उत्पादन का 16 प्रतिशत योगदान करता है और इस क्षेत्र में प्रथम स्थान पर है. उन्होंने बताया कि संस्थान ने अब तक 33 सब्जी फसलों में 129 किस्में विकसित की हैं. उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि टमाटर (काशी तपस, काशी अद्भुत) 40 डिग्री सेन्टीग्रेड पर भी अच्छी उपज देता है और कल्मी साग की खेती कम पानी में मई-जून में भी की जा सकती है. बैंगन (काशी उत्सव), पालक (काशी बारहमासी), सेम (काशी बौनी सेम, पंखिया सेम), गाजर (काशी कृष्ण) और बासमती सुगंध वाली नेनुआ का बीज उत्पादन एफ.पी.ओ. के लिए अधिक लाभकारी रहेगा.
एफपीओ को मिले सरकारी लाभ और प्रशिक्षण

सब्जी उत्पादन में नई क्रांति लाने का काम करेगी
अमित जयसवाल, उप-निदेशक (कृषि), वाराणसी ने बताया कि 95 प्रतिशत किसानों की जोत 1 प्रतिशत से भी कम है, इसलिए एफपीओ को शक्ति पोर्टल से जुड़कर सीएसआर फंड का लाभ लेने की जरूरत है. वहीं सुभाष कुमार, जिला उद्यान अधिकारी, वाराणसी ने बताया कि सरकार सब्जियों और मसाला फसलों के बीज उत्पादन हेतु प्रति हेक्टेयर 24,000 रुपये तक सब्सिडी देती है. दो तकनीकी सत्रों का आयोजन किया गया, जिसमें डॉ. नीरज सिंह, डॉ. विकास सिंह, डॉ. पी.एम. सिंह, डॉ. अर्चना सान्याल और डॉ. सुदर्शन मौर्य ने बीज उत्पादन, प्रमाणीकरण और व्यवसायिकरण पर व्याख्यान दिया.
एफपीओ की भागीदारी और नए अनुबंध

कार्यक्रम में निदेशकों और प्रतिनिधियों ने भाग लिया.
इस अवसर पर 110 एफ.पी.ओ. के निदेशकों और प्रतिनिधियों ने भाग लिया. दो नए एफपीओ ने संस्थान के साथ सब्जी बीज उत्पादन के लिए अनुबंध भी किए. कार्यक्रम का संचालन डॉ. नीरज सिंह ने किया और धन्यवाद ज्ञापन डॉ. अनंत बहादुर ने दिया. तकनीकी सहयोग विवेक सिंह ने किया. इस तरह के आयोजन से एफ.पी.ओ. को नई तकनीक सीखने, सरकारी योजना का लाभ लेने और बीज उत्पादन को व्यवसायिक रूप देने का मौका मिलेगा.