Animal Care Tips : सर्दियों का मौसम जैसे-जैसे ठंड बढ़ाता है, वैसे-वैसे पशुपालकों की चिंता भी बढ़ने लगती है. क्योंकि इस मौसम में गाय, भैंस और बकरी जैसे पशु कई बीमारियों की चपेट में जल्दी आ जाते हैं. इन दिनों एक ऐसी वायरल बीमारी तेजी से फैल रही है, जिसने छोटे-बड़े पशुपालकों को परेशान कर दिया है. यह बीमारी न केवल पशुओं के स्वास्थ्य पर हमला करती है, बल्कि दूध उत्पादन को भी भारी नुकसान पहुंचाती है. ऐसे समय में सावधानी और समय पर पहचान ही सबसे बड़ा बचाव है.
ठंड में बढ़ रहा खतरा, क्यों फैल रही है यह बीमारी
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, सर्दियों में पशुओं का इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है. तापमान में अचानक गिरावट से वायरस और बैक्टीरिया तेजी से सक्रिय होने लगते हैं. ऐसे समय में खुरपका-मुंहपका (FMD) बीमारी सबसे तेज फैलती है. यह बीमारी एक संक्रमित पशु से दूसरे तक हवा, चारा, पानी और यहां तक कि एक ही जगह बांधने से भी फैल सकती है. यही वजह है कि इस सीजन में इसका असर अधिक देखने को मिलता है. पशुपालक इस समय थोड़ी सी लापरवाही करें, तो पूरी पशुधन पर इसका असर दिख सकता है.
कैसे पहचानें खुरपका-मुंहपका बीमारी के शुरुआती लक्षण
इस बीमारी का सबसे खतरनाक पहलू यह है कि पहले 1-2 दिनों तक इसके संकेत हल्के दिखते हैं, जिन्हें कई पशुपालक सामान्य समझकर नजरअंदाज कर देते हैं. शुरुआत में पशु खाना कम कर देता है और कमजोर दिखाई देता है. इसके बाद मुँह, जीभ और होंठ के आसपास छोटे-छोटे फफोले बनने लगते हैं. ये फफोले फटने पर पशु को तेज दर्द होता है और वह पानी तक ठीक से नहीं पी पाता. खुरों में सूजन के कारण चलने में दर्द होता है. कई बार पशु बैठने और उठने में भी असहज महसूस करता है. सबसे बड़ा असर दूध पर पड़ता है-दूध उत्पादन में 70 से 80 प्रतिशत तक की गिरावट देखी जाती है, जिससे सीधे-सीधे किसान की आर्थिक स्थिति प्रभावित होती है.
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बीमारी फैलने के मुख्य कारण, क्या कहते हैं एक्सपर्ट
विशेषज्ञों के अनुसार यह बीमारी एक वायरल इंफेक्शन है, जो विशेष रूप से दो-खुर वाले जानवरों को प्रभावित करती है. संक्रमित पशु का लार, मूत्र, मल और छींक के माध्यम से वायरस बाहर आता है. यह वायरस कई दिनों तक वातावरण में जिंदा रह सकता है, इसलिए इसकी रफ्तार बहुत तेज मानी जाती है. दूसरा बड़ा कारण है साफ-सफाई की कमी. जब पशुओं को गंदे या नमी वाले स्थान पर रखा जाता है, तो संक्रमण का खतरा और बढ़ जाता है. कई बार पशुपालक एक ही पानी की टंकी या चारे की नांद का उपयोग करते हैं, जिससे बीमारी तेजी से फैलती है. ठंड के मौसम में पशुओं को कम धूप मिलती है, जो उनकी प्रतिरोधक क्षमता और कम कर देती है.
कैसे करें बचाव? ये उपाय मानेंगे तो नहीं होगा बड़ा नुकसान
किसी भी बीमारी से बचने का सबसे कारगर तरीका है-समय पर रोकथाम. पशु चिकित्सकों का कहना है कि FMD का टीका सबसे जरूरी है. हर पशु को समय पर टीकाकरण की आवश्यकता होती है, ताकि बीमारी का असर न हो सके. टीकाकरण के साथ साफ-सफाई बेहद जरूरी है. पशुओं को सूखे और हवादार स्थान पर रखें, जहां नमी या गंदगी न हो. रोगी पशु को तुरंत अन्य पशुओं से अलग कर देना चाहिए ताकि बीमारी फैलने की गति रुक जाए. चारा, पानी और बर्तन साफ रखें और उन्हें नियमित रूप से धूप में सुखाएं. पशुओं को संतुलित आहार देना भी बहुत जरूरी है, ताकि उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत रहे. हरा चारा, मिनरल मिक्स और साफ पानी हमेशा उपलब्ध कराएं.
बीमारी बढ़ने पर क्या करें? देर की तो बड़ा नुकसान
अगर आपको दिखे कि पशु बार-बार मुंह खोल रहा है, चलने में कठिनाई हो रही है या चारा छोड़ रहा है, तो तुरंत इलाज शुरू करना चाहिए. समय पर डॉक्टर को दिखाने से बीमारी पर आसानी से नियंत्रण पाया जा सकता है. अगर फफोले बन गए हैं, तो उन्हें साफ रखना चाहिए और किसी भी तरह के तेज रसायन या घरेलू नुस्खे लगाने से बचना चाहिए. बीमारी बढ़ने पर पशु का शरीर कमजोर होने लगता है और उसकी उत्पादन क्षमता कम हो जाती है. ऐसी स्थिति में देरी महंगी पड़ सकती है, क्योंकि दूध की कमी और इलाज का खर्च दोनों मिलकर आर्थिक नुकसान बढ़ा देते हैं. इसलिए सावधानी, निगरानी और तुरंत कदम उठाना ही सबसे बड़ा हथियार है.