दक्षिण भारत के तमिलनाडु में पहाड़ियों और हरियाली से भरे इलाकों में एक खास भैंस पाई जाती है, जिसे स्थानीय लोग प्यार से मलाई एरुमई कहते हैं. बरगुर भैंस अपनी ताकत, सहनशक्ति और खास दूध की गुणवत्ता के लिए जानी जाती है. इस भैंस का दूध भले ही मात्रा में ज्यादा न हो, लेकिन इसके फैट कंटेंट और स्वाद के कारण यह पारंपरिक घरों में काफी लोकप्रिय है. आइए जानते हैं तमिलनाडु की इस देसी और खास भैंस के बारे में विस्तार से.
बरगुर भैंस कहां पाई जाती है?
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, बरगुर भैंस मुख्य रूप से तमिलनाडु के एरोड जिले और पेरियार जिले के अंथियूर तालुक के बरगुर हिल्स और आसपास के गांवों में पाई जाती है. यह इलाका पहाड़ियों और हरियाली से भरा है और इसकी जलवायु बरगुर भैंस के लिए बेहद अनुकूल है. स्थानीय लोग इस भैंस को मलाई एरुमई या मलाई एम्मई भी कहते हैं, जिसका अर्थ होता है पहाड़ी भैंस.
बरगुर भैंस का मुख्य उपयोग और उत्पत्ति
बरगुर भैंस का मुख्य उद्देश्य घरेलू दूध, छाछ और गोबर उत्पादन है. इसका दूध स्वादिष्ट और पौष्टिक होता है, खासकर दही और मट्ठा बनाने के लिए. यह नस्ल स्थानीय लोगों द्वारा परंपरागत तरीके से संवर्धित की गई है. नाम ‘बरगुर’ इसी स्थान से लिया गया है, जहां यह भैंस बड़ी संख्या में पाई जाती है. बरगुर भैंस की विशेषता यह है कि यह वन क्षेत्रों और पहाड़ी इलाकों में चराई करने के लिए सबसे उपयुक्त है.
बरगुर भैंस की पहचान
बरगुर भैंस का रंग भूरा या भूरा-काला होता है. इसके दो सींग पीछे की ओर मुड़े होते हैं. नर भैंस की ऊंचाई औसतन 108.27 सेमी और लंबाई 94.87 सेमी होती है, जबकि मादा भैंस की ऊंचाई 102.83 सेमी और लंबाई 93.33 सेमी होती है. सीना (Heart Girth) लगभग 149.8 सेमी तक पहुंचता है. इसकी पूंछ, थूथन और आंखों की पलकों का रंग काला होता है, जबकि खुर ग्रे रंग के होते हैं. यह नस्ल अपने मजबूत शरीर और चुस्ती के लिए भी जानी जाती है.
पालन-पोषण और चराई
बरगुर भैंसों को आमतौर पर विस्तारित प्रणाली (Extensive System) में पाला जाता है. ये स्थायी जगह पर नहीं रहतीं, बल्कि जंगल और खेतों के किनारे चराई करती हैं. किसान इन्हें स्थानीय सांड़ कोनान के साथ प्रजनन के लिए रखते हैं. यह नस्ल कठिन पहाड़ी इलाकों और जंगलों में आसानी से चल सकती है, जिससे यह आदिवासी और सीमांत किसानों के लिए बेहद उपयोगी बन जाती है.
दूध उत्पादन क्षमता
बरगुर भैंस का दूध उत्पादन अन्य नस्लों की तुलना में कम होता है, लेकिन इसमें फैट की मात्रा लगभग 8.59 फीसदी होती है. यह रोजाना औसतन 6-7 लीटर तक दूध देती है और प्रति ब्यांत 700-1200 किलोग्राम दूध का उत्पादन कर सकती है. पहली ब्यांत की औसत उम्र 46 महीने होती है और ब्यांत का अंतराल 16-18 महीने रहता है. इस दूध का स्वाद और पौष्टिकता इसे घरेलू उपभोग और दही-मट्ठा बनाने के लिए बेहद उपयुक्त बनाती है.
बरगुर भैंस की विशेषताएं
बरगुर भैंस की सबसे बड़ी खासियत इसका उच्च दुग्ध फैट प्रतिशत है. यह नस्ल केवल वन क्षेत्रों और पहाड़ी इलाकों में ही चराई के लिए उपयुक्त है. कठिन जलवायु और खड़ी पहाड़ियों में भी यह आसानी से जीवित रह सकती है. इसके अलावा, इसे कम संसाधनों में भी रखा जा सकता है, जिससे यह आदिवासी और सीमांत किसानों के लिए आदर्श विकल्प बन जाती है. बरगुर भैंस तमिलनाडु की सांस्कृतिक और पारंपरिक विरासत का अहम हिस्सा है. इसका दूध स्वादिष्ट और पौष्टिक होने के साथ-साथ पारंपरिक घरेलू उपयोग के लिए आदर्श है. यदि इसे वैज्ञानिक तरीके से संवर्धन और संरक्षण के तहत रखा जाए, तो यह नस्ल पशुपालन के क्षेत्र में स्थायी और लाभकारी विकल्प बन सकती है.