भारत का डेयरी क्षेत्र आज नए बदलावों के दौर से गुजर रहा है. निर्यात बढ़ाना, तकनीक को अपनाना और विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धा करना अब समय की मांग है. इसी सोच के साथ एन.डी.आर.आई. ग्रेजुएट्स एलुमनी एसोसिएशन (एन.जी.ए.ए.) और आई.सी.ए.आर.- नैशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीट्यूट (एन.डी.आर.आई.), करनाल की ओर से भारतीय डेयरी उद्योग का वैश्वीकरण विषय पर 12वीं राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया.
इस संगोष्ठी में देशभर के 400 से ज्यादा प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया, जिनमें नीति निर्माता, वैज्ञानिक, उद्योगपति, प्रोफेशनल्स और स्टूडेंट्स शामिल रहे. आइए जानते हैं इस खास आयोजन की कुछ मुख्य बातें…
ग्लोबल लेवल पर डेयरी को पहुंचाने की जरूरत
इस संगोष्ठी के मुख्य अतिथि पद्मभूषण डॉ. आर.एस. परोदा ने कहा कि आज का समय वैश्विक सोच का है. डेयरी उद्योग को भी अब सिर्फ घरेलू मांग तक सीमित नहीं रखना चाहिए, बल्कि उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ले जाने की जरूरत है. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि डेयरी संस्थानों को देश के लिए कुशल मानव संसाधन तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए. डॉ. परोदा ने डॉ. एस.एस. मान के योगदान की भी सराहना की, जिन्होंने एन.डी.आर.आई. में उत्कृष्टता केंद्र की स्थापना में अहम भूमिका निभाई. साथ ही उन्होंने बकरी के दूध के निर्यात में छिपे संभावित अवसरों की ओर ध्यान दिलाया.
गुणवत्ता और तकनीक के साथ बढ़ेगा निर्यात
निफ्टम (सोनीपत) के निदेशक डॉ. एच.एस. ओबरॉय ने अपने विचार रखते हुए कहा कि अगर हमें डेयरी उत्पादों को विदेशों में निर्यात करना है, तो हमें गुणवत्ता मानकों का सख्ती से पालन करना होगा. उन्होंने बताया कि भारत में डेयरी क्षेत्र कई चुनौतियों का सामना कर रहा है जैसे- उत्पादन में कमी, बाजार तक सीमित पहुंच, ठोस बुनियादी ढांचे की कमी और कोल्ड चेन की सीमाएं. उन्होंने ओटी (ऑनलाइन ट्रैकिंग) सक्षम कोल्ड स्टोरेज की जरूरत पर भी जोर दिया जिससे उत्पाद ताजगी के साथ विदेश पहुंच सकें.
एआई और एमएल से डेयरी में आ रहा नया युग
सीएसआईआर-एनआईआईएसटी, तिरुवनंतपुरम के निदेशक डॉ. सी. आनंदरामकृष्णन ने डेयरी और फूड प्रोसेसिंग में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और मशीन लर्निंग (एमएल) की भूमिका पर बात की. उन्होंने कहा कि एआई की मदद से न सिर्फ प्रोडक्शन को स्मार्ट बनाया जा सकता है, बल्कि उत्पादों की ट्रेसबिलिटी (यानी स्रोत से ग्राहक तक का सफर) और क्वालिटी कंट्रोल में भी बेहतरी लाई जा सकती है. इससे उपभोक्ताओं का भरोसा भी बढ़ेगा और वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा भी मजबूत होगी.
भारत के डेयरी निर्यात को चाहिए स्थिरता
वक्ता विपिन कक्कड़ ने कहा कि भारत में डेयरी उत्पादों की भरपूर क्षमता है, लेकिन निर्यात में लगातार स्थिरता नहीं आ पा रही है. उन्होंने बताया कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में टिका रहने के लिए निरंतर गुणवत्ता, भरोसेमंद सप्लाई और दामों में प्रतिस्पर्धा बेहद जरूरी है. सरकार की कई योजनाएं और पहलें इस दिशा में काम कर रही हैं, लेकिन इन्हें ज़मीन पर उतारने के लिए उद्योग और वैज्ञानिकों को मिलकर काम करना होगा.
न्यूट्रास्यूटिकल्स में है अपार संभावनाएं
डॉ. टी.एन. तिवारी ने एक खास सेगमेंट- न्यूट्रास्यूटिकल्स पर रोशनी डाली. उन्होंने बताया कि विशेषकर शिशु पोषण से जुड़ा यह क्षेत्र तेजी से बढ़ रहा है और इसका अंतरराष्ट्रीय बाजार 50-55 मिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच चुका है. भारत को इस सेगमेंट में गंभीरता से निवेश करना चाहिए ताकि हम सिर्फ दूध और दही तक सीमित न रह जाएं, बल्कि हेल्थ सप्लिमेंट्स जैसे उत्पादों के क्षेत्र में भी मजबूत स्थिति बना सकें.
छात्रों की प्रतिभा का मंच बना मिल्काथॉन-2025
इस आयोजन में छात्रों के लिए खास रूप से मिल्काथॉन-2025 नामक राष्ट्रीय स्तर की शोध और व्यवसायिक विचार प्रतियोगिता रखी गई. इसमें देशभर के लगभग 15 डेयरी विज्ञान महाविद्यालयों की टीमों ने भाग लिया. एन.डी.आर.आई. की टीम ने प्रथम पुरस्कार जीता, जबकि सी.डी.एफ.एस.टी. रायपुर की टीम द्वितीय स्थान पर रही. इसके अलावा छात्रों के लिए पोस्टर प्रस्तुतियों का आयोजन भी हुआ, जिसमें उनकी रिसर्च और इनोवेशन को सराहा गया. समापन सत्र में एन.डी.आर.आई. के पूर्व छात्रों को सम्मानित किया गया, जिनमें प्लेटिनम, स्वर्ण और रजत जयंती बैच शामिल थे.