कम खर्च, ज्यादा कमाई वाला धंधा चाहिए? इस पशु का पालन करें किसान

किसानों के लिए पशुपालन हमेशा से कमाई का धंधा रहा है. इससे किसानों का खर्च कम और कमाई ज्यादा होती है. किसान ऊन के साथ इन चीजों से अच्छी आमदनी पा रहे हैं. सही नस्ल चुनकर कोई भी इस काम से लखपति बन सकता है.

Kisan India
नोएडा | Published: 14 Oct, 2025 | 03:03 PM

अगर आप गांव में रहते हैं और कम खर्च में अच्छी कमाई का रास्ता ढूंढ रहे हैं तो भेड़ पालन आपके लिए सुनहरा मौका हो सकता है. पहले लोग गाय-भैंस या बकरी पालन को ही पशुपालन मानते थे, लेकिन अब हालात बदल रहे हैं. आज गांव के युवा भेड़ पालन को कम मेहनत और ज्यादा मुनाफे वाले धंधे की तरह अपना रहे हैं. खास बात यह है कि ठंड के मौसम में ऊन और मांस की मांग इतनी बढ़ जाती है कि लागत के मुकाबले मुनाफा कई गुना ज्यादा मिल जाता है.

भेड़ का दूध भी है खजाना, कमजोर लोगों के लिए वरदान

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, बहुत कम लोग जानते हैं कि भेड़ का दूध भी सेहत  के लिए बेहद फायदेमंद होता है. इसमें कैल्शियम, पोटैशियम, मैग्नीशियम, जिंक और विटामिन ए-ई जैसे पोषक तत्व अच्छी मात्रा में मिलते हैं. यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है, पाचन शक्ति को मजबूत करता है और दिल को स्वस्थ रखने में मदद करता है. कई ग्रामीण इलाकों  में लोग इसे बच्चों और बुजुर्गों के लिए ताकतवर टॉनिक की तरह इस्तेमाल करते हैं.

गांवों में तेजी से बढ़ रहा भेड़ पालन

शहरों में भेड़ पालन अभी थोड़ा कम देखा जाता है, लेकिन गांवों में लोग तेजी से इसे अपना रहे हैं. कई किसान अब खेती के साथ-साथ भेड़ पालन भी कर रहे हैं ताकि साल भर आमदनी बनी रहे. कुछ परिवार तो पूरी तरह इसी पर निर्भर होकर अपना घर चला रहे हैं. भेड़ पालन की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें दाना-पानी पर ज्यादा खर्च नहीं आता. ये जानवर खुले में घास-फूस खाते हुए आसानी से पल जाते हैं.

कौन सी नस्ल सबसे ज्यादा फायदा देती है?

भेड़ पालन शुरू करने से पहले यह समझना जरूरी है कि आप ऊन बेचना चाहते हैं या मांस. अगर आपका फोकस ऊन पर है तो चोकला और दक्कनी नस्लें बहुत बढ़िया रहती हैं. वहीं अगर मुनाफा मांस से कमाना है तो मांड्या, सफोक और मुजफ्फरनगरी नस्ल ज्यादा कमाई कराती हैं. कुछ किसान विदेशी नस्लें भी पाल रहे हैं, लेकिन शुरुआत में देसी नस्ल लेना बेहतर माना जाता है, क्योंकि इन्हें संभालना आसान होता है.

खर्च कम, मुनाफा ज्यादा

अगर आप गाय या भैंस रखते हैं तो आपको चारा, दाना, दवाई पर काफी खर्च करना पड़ता है. लेकिन भेड़ पालन  में यह खर्च बहुत कम होता है. एक बार झुंड तैयार हो जाए तो एक भेड़ साल में दो बच्चे तक दे देती है. यानी धीरे-धीरे आपका छोटा सा झुंड कुछ ही सालों में बड़ा हो जाता है. ऊपर से ऊन की बिक्री अलग और मांस की कमाई अलग. यही वजह है कि किसान इसे पक्के धंधे की तरह देखने लगे हैं.

बस जरूरत है एक सही शुरुआत की

आज सरकार भी पशुपालकों को ट्रेनिंग और आर्थिक सहायता देने लगी है. कई जगह सहकारी समितियां और पशुपालन विभाग भेड़ पालन के लिए कर्ज और सब्सिडी भी उपलब्ध कराते हैं. अगर सही जानकारी और थोड़ी मेहनत के साथ शुरुआत की जाए, तो यह धंधा किसी भी छोटे किसान को लखपति बनाने की ताकत रखता है.

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