कुपोषण से जूझते लोगों के लिए शुरू की मशरूम की खेती, ग्वालियर की निशा ने पेश की बदलाव की अनोखी मिसाल

निशा ने 500 से ज्यादा किसानों को मशरूम की खेती से जोड़ा है, किसान भी मशरूम की खेती को प्राथमिकता दे रहे हैं. निशा MoU के जरिए इन किसानों के उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय बाजारों तक पहुंचा रही हैं

नई दिल्ली | Published: 5 Aug, 2025 | 10:00 AM

ऐसे बहुत कम लोग होते हैं जो दूसरों को तकलीफ में देखकर उनके लिए कुछ अच्छा, उनकी परेशानियों को कम करने के हौसले से बदलाव लाने का विचार करते हैं. लेकिन आज की हमारी ‘चैंपियन किसान’ की सीरीज में हम ऐसी ही एक महिला की बात करने वाले हैं जिन्होंने न केवल ग्रामीण इलाकों में रहने वालों की तकलीफ को देखा बल्कि उसको समझा भी, और उसका समाधान करने की भी ठानी. दरअसल, मध्य प्रदेश के ग्वालियर में रहने वाली निशा निरंजन ने जब देखा कि ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोग कुपोषण के शिकार हो रहे हैं तो उन्हें पौष्टिक आहार देने के लिए निशा ने मशरूम की खेती की शुरुआत की. शायदा आपको ये अजीब लग सकता है, लेकिन निशा ने न केवल मशरूम की मदद से पौष्टिक उत्पाद बनाए बल्कि इन उत्पादों को बनाने की प्रक्रिया में बहुत सी महिलाओं को अपने साथ जोड़ा और उन्हें रोगजार देकर आर्थिक तौर पर सशक्त भी किया. आज निशा समाज में एक मिसाल के तौर पर जानी जाती हैं.

फंगस में रुचि से शुरू हुई कहानी

मध्यप्रदेश के ग्वालियर की रहने वाली निशा निरंजन ने मशरूम साइंस में पीएचडी (PhD) की है. निशा बताती हैं कि जब वे बीएससी (B.Sc) में ग्रैजुएशन कर रही थीं, उन्हें तभी से फंगस में रुचि थी. उनका मानना है कि फंगस कई बीमारियों का समाधान हो सकता है. उनकी इस सोच और फंगस में रुचि ने उन्हें मशरूम पर शोध करने के लिए प्रेरित किया. मशरूम पर शोध के दौरान निशा ने भारत में पहली बार एशिया के सबसे दुर्लभ मशरूम को उगाने का कारनामा कर दिखाया. इस सफलता ने निशा निरंजन को और ज्यादा प्रेरित किया और इसके बाद निशा ने मशरूम की खेती से जुड़ी संभावनाओं को तलाशते हुए न्यू प्रोडक्ट डेवलपमेंट में पोस्ट ग्रैजुएशन किया. इस दौरान निशा शोध के लिए ग्रामीण इलाकों में जाती थीं जहां उन्होंने लोगों को पोषण की कमी के चलते कुपोषण का शिकार होते देखा. इसके बाद निशा ने मशरूम की खेती की तरफ अपना ध्यान केंद्रित किया ताकि वे इन ग्रामीणों की किसी तरह मदद कर सकें.

Mushroom

निशा निरंजन के खेतों के मशरूम

मशरूम से बनाए पौष्टिक उत्पाद

निशा बताती हैं कि कुपोषण के कारण ग्रामीणों का शरीर दुबला-पतला और कमजोर हो रहा था जो कि उनकी सेहत पर बुरा असर डाल रहा था. ग्रामीणों की इस समस्या के समाधान के लिए निशा ने मशरूम पर ध्यान केंद्रित किया, क्योंकि इसमें 2.5 से 3.5 प्रतिशत प्रोटीन होता है, जो शाकाहारी लोगों के लिए सस्ता और पौष्टिक विकल्प है. निशा ने मशरूम से 15 तरह के उत्पाद बनाएं जिनमें पापड़, आचार, आटा और खाखरा शामिल हैं. खास बात ये है कि ये सभी उत्पाद बाजार में बहुत ही किफायती दामों पर उपलब्ध हैं. इसके साथ ही निशा ने मशरूम की खेती को सस्ता और सुलभ बनाने के लिए अनोखा तरीका अपनाया. बता दें कि ,आमतौर पर मशरूम के लिए गेहूं का भूसा इस्तेमाल होता है, जो महंगा और हर जगह उपलब्ध नहीं होता है. लेकिन निशा ने चना, धान और सोयाबीन के पुआल पर मशरूम उगाने की तकनीक विकसित की जिससे मशरूम की खेती उनके लिए आसान बन गई.

Gwalior Success Story

कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ निशा निरंजन

महिलाओं को रोजगार देकर बना रहीं सशक्त

एक ओर जहां निशा ने ग्रामीणों को पौष्टिक आहार का विकल्प देने के लिए मशरूम की खेती की शुरुआत की वहीं , दूसरी तरफ उन्होंने ग्रामीण महिलाओं को मशरूम की खेती की ट्रेनिंग देना भी शुरू किया. इस ट्रेनिंग की खास बात ये है कि ये इसके लिए महिलाओं को किसी भी तरह की फीस नहीं देनी होती है. आज ये महिलाएं ट्रेनिंग पाकर मशरूम की खेती से न केवल खुद को आर्थिक तौर पर मजबूत बना रही हैं बल्कि खुद की जरूरतें भी पूरा कर पा रही हैं. इसके साथ ही, ये रोजगार महलिाओं के प्रति घरेलू हिंसा को कम करने और घर में सम्मान बढ़ाने में भी मददगार साबित हो रहा है. निशा का मानना है कि आर्थिक आजादी सामाजिक बदलाव की नींव है.

Madhya Pradesh Successful Women

ग्वालियर की निशा निरंजन

जर्मनी और कतर में होता है मशरूम निर्यात

निशा ने 500 से ज्यादा किसानों को मशरूम की खेती से जोड़ा है, किसान भी मशरूम की खेती को प्राथमिकता दे रहे हैं. निशा MoU के जरिए इन किसानों के उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय बाजारों तक पहुंचा रही हैं. निशा ने अपनी कंपनी ‘वी.एन. ऑर्गेनिक प्राइवेट लिमिटेड’ के जरिए मशरूम उत्पादों को जर्मनी और कतर जैसे देशों में निर्यात करना शुरू किया है. इन देशों में उनके उत्पादों की भारी मांग उनकी मेहनत और उत्पादन की अच्छी क्वालिटी का सबूत हैं. निशा निरंजन की यह पहल कुपोषण के खिलाफ लड़ाई के साथ-साथ ग्रामीण अर्थव्यवस्था और महिलाओं के सशक्तिकरण का प्रतीक है. समाज बदलाव लाने की निशा की इस सोच ने उन्हें सबके लिए मिसाल बना दिया है और आज वे दूसरे लोगों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बन गई हैं.

Published: 5 Aug, 2025 | 10:00 AM