Agriculture News: धान कटाई के साथ ही उत्तर प्रदेश में गेहूं की बुवाई शुरू हो गई है. लेकिन कई ऐसे किसान हैं, जो किस्मों को लेकर असमंजस में हैं. ऐसे में इन किसानों की चिंता करने की जरूरत नहीं है. आज हम गेहूं की ऐसे किस्मों के बारे में चर्चा करने जा रहे हैं, जिसकी बुवाई करने के बाद बंपर पैदावार होगी. खास बात ये है कि इन किस्मों की खेती में लागत भी कम आती है. तो आइए आज जानते हैं, गेहूं की दो उन्नत किस्मों के बारे में.
कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक, गेहूं की बुवाई का सबसे अच्छा समय नवंबर का पहला हफ्ता होता है. क्योंकि इस दौरान तापमान और मिट्टी की नमी फसल के अंकुरण और विकास के लिए आदर्श रहती है. समय पर बुवाई करने से उत्पादन बढ़ता है और फसल रोगों से भी सुरक्षित रहती है. अगर किसान ज्यादा उपज और बेहतर गुणवत्ता किस्मों का चयन करते हैं, तो पैदावार बढ़ जाएगी. अगर किसान चाहें, तो इस सीजन में DBW-187 (कर्ण वंदना) और HD-2967 किस्मों की बुवाई कर सकते हैं.
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70 क्विंटल प्रति हेक्टेयर मिलेगी पैदावार
खास बात यह है कि DBW-187 को कर्ण वंदना के नाम से भी जाना जाता है. यह एक उन्नत और ज्यादा उपज देने वाली गेहूं की किस्म है. यह फसल 120 से 130 दिनों में तैयार हो जाती है और सिंचित खेतों में 50 से 70 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन देती है. इसके दाने मोटे, चमकदार और आटे की क्वालिटी बेहतरीन होती है, जिससे किसानों को बाजार में अच्छी कीमत मिलती है.
प्रति हेक्टेयर 100 से 120 किलो बीज है पर्याप्त
DBW-187 (कर्ण वंदना) किस्म की बुवाई के लिए प्रति हेक्टेयर 100 से 120 किलो बीज पर्याप्त होता है. बीज को 4 से 5 सेंटीमीटर गहराई पर बोना चाहिए. बुवाई से पहले बीज का ट्राइकोडर्मा या कार्बेन्डाजिम से उपचार करना जरूरी है, ताकि फसल रोगों से सुरक्षित रहे. साथ ही खेत को अच्छी तरह तैयार करें, ताकि मिट्टी में पर्याप्त नमी बनी रहे. साथ ही, खरपतवार नियंत्रण के लिए बुवाई के करीब 25 दिन बाद निराई या दवा का छिड़काव करें.
HD-2967 किस्म की क्या है खासियत
वहीं, HD-2967 किस्म तराई और मैदानी इलाकों के लिए बेहतरीन मानी जाती है. इस किस्म से किसान 55 से 65 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज ले सकते हैं. इसकी अवधि 120 से 125 दिन होती है और पौधे मजबूत व मध्यम ऊंचाई (90 से 100 सेमी) के होते हैं, जिससे फसल के गिरने का खतरा बहुत कम रहता है. यह किस्म भूरे रतुआ और झुलसा रोगों के प्रति भी सहनशील है. किसानों का कहना है कि ये दोनों किस्में अच्छी पैदावार, बढ़िया दाने की गुणवत्ता और बेहतर बाजार भाव देती हैं. अगर किसान समय पर सिंचाई, खाद और रोग नियंत्रण पर ध्यान दें, तो उन्हें बेहतरीन उत्पादन मिल सकता है.