Diwali 2025: हिंदुओं के सबसे बड़े त्योहार दीवाली के दूसरे दिन लोग गोवर्धन पूजा करते हैं. देशभर में सभी जगह गोवर्धन पूजा की जाती है, कई जगहों पर इस पूजा को अन्नकूट उत्सव भी कहा जाता है. बता दें कि, ये पर्व भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाने के प्रतीक के रूप में हर साल दीवाली के बाद मनाया जाता है. इस दिन लोग प्रकृति, पर्वत, गाय और अन्न की पूजा करते हैं, क्योंकि यही जीवन के आधार माने जाते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपने हाथ पर क्यों उठाया था, औक क्या है इससे जुड़ी पौराणिक कथा. साथ ही दीवाली पर क्यों की जाती है गोवर्धन पूजा. आइए जानते हैं कि क्या है गोवर्धन पूजा.
वर्धन पूजा की पौराणिक कथा
हिंदू मान्यताओं और पौराणिक कथाओं के अनुसार, वृंदावन के लोग हर साल इंद्र देव की पूजा किया करते थे ताकि इंद्र देव वर्षा करें और वृंदावन वासियों की फसलें अच्छी हों. इस मान्यता को देखकर एक दिन बाल रूप में भगवान कृष्ण ने अपने पिता नंद बाबा से पूछा कि हम इंद्र की पूजा क्यों करते हैं? क्या हमें उस पर्वत की पूजा नहीं करनी चाहिए, जो हमें जल, चारा और अन्न देता है?
इसके बाद बालक कृष्ण के सुझाव पर सभी ब्रजवासी गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे. उन्होंने पर्वत के चारों ओर परिक्रमा की और अन्नकूट बनाकर भगवान को भोग लगाया. कहते हैं इंद्र देव से ये सब सहन नहीं हुआ और क्रोध में उन्होंने भयंकर वर्षा और तूफान शुरू कर दिया ताकि ब्रजवासियों को दंड मिल सके.
भगवान ने क्यों उठाया गोवर्धन पर्वत
कहते हैं जब इंद्र देव के प्रकोप से चारों ओर जलभराव और विनाश का खतरा छा गया, तब भगवान कृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठा लिया. श्रीकृष्ण ने सभी ग्वालों, गायों और ग्रामीणों को पर्वत के नीचे शरण दी. पुराणों के अनुसार, ऐसा भी कहा जाता है कि श्रीकृष्ण ने सात दिनों तक पर्वत को उठाए रखा, जिससे किसी को कोई हानि नहीं हुई. इसके बाद अंत में इंद्र देव ने अपनी गलती को माना और श्रीकृष्ण से माफी भी मांगी. बस तबसे ही इस दिन को गोवर्धन पूजा के रूप में मनाया जाता है.
गोवर्धन पूजा का महत्व
दीवाली के अगले दिन लोग गोवर्धन की पूजा करते हैं. अपने घरों में गोबर से गोवर्धन पर्वत का प्रतीक बनाकर पूजा करते हैं. यह पूजा केवल भगवान कृष्ण की नहीं, बल्कि प्रकृति और अन्न की भी आराधना है. भगवान कृष्ण से जुड़ी इस पौराणिक कथा ने हमें सिखाया कि मनुष्य को प्रकृति, पशु और भूमि का सम्मान करना चाहिए, क्योंकि इन्हीं से जीवन संभव है. कई जगह गायों और बैलों को सजाकर उनकी भी पूजा की जाती है.