Soybean Farming: भारत को खाद्य तेल और प्रोटीन के मामले में आत्मनिर्भर बनाने के लिए सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (SOPA) ने ‘सोया सीड रेवोल्यूशन’ की शुरुआत का आह्वान किया है. इस मुहिम के तहत ऐसे सोयाबीन के बीज तैयार किए जाएंगे, जो ज्यादा पैदावार देने वाले होंगे और मौसम के असर को सह सकेंगे. इन बीजों को समय पर देशभर के किसानों तक पहुंचाया जाएगा. SOPA के चेयरमैन डॉ. डेविश जैन ने इंटरनेशनल सोया कॉन्क्लेव 2025 में कहा कि भारत की तेल और प्रोटीन में आत्मनिर्भरता की असली चाबी ‘बीज क्रांति’ है. उन्होंने कहा कि सोयाबीन सिर्फ एक फसल नहीं, बल्कि किसानों की उम्मीद, ग्रामीण अर्थव्यवस्था की ताकत और देश की पोषण शक्ति है. अब वक्त आ गया है कि ऐसी बीज क्रांति शुरू हो जो पैदावार को दोगुना करे और किसानों को फिर से आत्मविश्वास दे.
डॉ. डेविश जैन ने कहा कि अभी भारत में सोयाबीन की औसत पैदावार सिर्फ 1.1 टन प्रति हेक्टेयर है, जबकि दुनियाभर का औसत 2.6 टन प्रति हेक्टेयर है. SOPA का लक्ष्य है कि अगले 5 सालों में इसे बढ़ाकर 2 टन प्रति हेक्टेयर किया जाए और कम से कम 70 फीसदी किसानों को उन्नत बीज उपलब्ध कराए जाएं. डॉ. जैन के मुताबिक, अगर प्रति हेक्टेयर सिर्फ 500 किलो की बढ़ोतरी भी हो जाए, तो इससे देश को खाद्य तेल के अरबों रुपये के आयात की बचत होगी और किसानों की आमदनी भी बढ़ेगी.
60 फीसदी से ज्यादा खाद्य तेल आयात
उन्होंने कहा कि सोया सीड रेवोल्यूशन सिर्फ कोई खेती का प्रोग्राम नहीं, बल्कि ये भारत की पोषण, कृषि और आर्थिक आजादी की दिशा में एक बड़ा कदम है. अब हमें बीज से लेकर थाली तक हर स्तर पर बदलाव लाना होगा. आज भारत अपनी जरूरत का 60 फीसदी से ज्यादा खाद्य तेल आयात करता है, जिस पर हर साल करीब 1.7 लाख करोड़ रुपये का खर्च आता है. इस निर्भरता को खत्म करने का सबसे बेहतर और टिकाऊ तरीका देश में ही उत्पादन बढ़ाना है.
जरूरत से कम ले रहे प्रोटीन
डॉ. डेविश जैन ने कहा कि असली आत्मनिर्भर भारत तभी बनेगा जब हम तेल बीज (ऑयल सीड्स) और प्रोटीन के मामले में खुद पर निर्भर हो जाएं. अगर हम सोयाबीन की उत्पादकता बढ़ाएं और इससे बनने वाले प्रोडक्ट्स में वैल्यू एडिशन करें, तो न सिर्फ देश के अरबों रुपये बचेंगे, बल्कि लाखों ग्रामीण युवाओं को रोजगार भी मिलेगा. उन्होंने सोयाबीन को ‘शक्ति का अन्न’ बताया और सरकार व खाद्य उद्योग से अपील की कि सोया से बने उत्पाद जैसे सोया फोर्टिफाइड आटा, सोया दूध, टोफू और सोया स्नैक्स को पीडीएस (Public Distribution System), मिड-डे मील और पोषण अभियानों में शामिल किया जाए. डॉ. जैन ने बताया कि भारत में 60 फीसदी से ज्यादा लोग रोजाना जरूरी प्रोटीन से कम मात्रा में प्रोटीन ले रहे हैं, जबकि सोया प्रोटीन दालों की तुलना में तीन गुना सस्ता और अधिक पौष्टिक होता है.
दैनिक भोजन में सोया को शामिल करें
उन्होंने सुझाव दिया कि यदि हम अपने दैनिक भोजन में सोया को शामिल करें, तो कुपोषण और ‘हिडन हंगर’ से प्रभावी रूप से लड़ सकते हैं. इस दिशा में जागरूकता और नीति निर्माण के प्रतीक के रूप में, 2026 को ‘सोयाबीन वर्ष’ घोषित करने की उन्होंने जोरदार अपील की. डॉ. जैन ने कहा कि सोयामील भारत के 1.2 लाख करोड़ रुपये मूल्य के पोल्ट्री, मत्स्य और पशुपालन उद्योग की आधारशिला है. उन्होंने सस्ते विकल्पों जैसे DDGS के बढ़ते प्रयोग पर चिंता जताई, जो गुणवत्ता और पोषण को नुकसान पहुंचाते हैं.