Wheat sowing: हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में किसान गेहूं की बुवाई नहीं कर पा रहे हैं. कहा जा रहा है कि कांगड़ा में डेढ़ महीने से लगातार सूखा है. यानी बिल्कुल बारिश नहीं हुई है. इसके कारण रबी मौसम में गेहूं की बोवाई प्रभावित हुई है. नवंबर में बारिश सामान्य से 89 फीसदी कम रही, जिससे खेतों की मिट्टी सूख गई और बोवाई में देरी हुई. अक्टूबर 15 से नवंबर 15 तक गेहूं बोने का आदर्श समय था, लेकिन बारिश न होने से यह काम लंबित रहा. यह शुष्क मौसम 15 दिसंबर तक जारी रह सकता है, जिससे पैदावार कम हो सकती है.
कृषि विभाग किसानों को सब्सिडी के साथ गेहूं के बीज उपलब्ध करा रहा है. बीज की बिक्री कीमत 40 रुपये प्रति किलो तय की गई है, जिसमें 10 रुपये की सब्सिडी दी जा रही है. इस साल रबी मौसम के लिए अब तक 28,327 क्विंटल बीज बांटे जा चुके हैं और 2,260 क्विंटल स्टॉक में हैं. कुलदीप धिमान ने कहा कि बीज की मांग बारिश और बाजार मूल्य पर निर्भर करती है. कई किसान पर्याप्त बारिश के बाद ही विभाग के केंद्रों पर पहुंचे, जिससे बोवाई में और देरी हुई और बीज की आभासी कमी पैदा हो गई.
कांगड़ा में 92,000 हेक्टेयर पर गेहूं की खेती होती है
द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, कांगड़ा जिले में लगभग 1 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य जमीन है, जिसमें से 92,000 हेक्टेयर पर गेहूं की खेती होती है. जिले का केवल 36 फीसदी क्षेत्र सिंचाई सुविधाओं से कवर है, इसलिए अधिकांश किसान बारिश पर निर्भर हैं. इस बार किसानों ने 46,000 हेक्टेयर में गेहूं बोया है, यानी कुल क्षेत्र का लगभग 50 फीसदी है. इस वर्ष DBW-187, DBW-222, HD-3226, PBW-550, DBW-303 और HD-3086 सहित नौ तरह के गेहूं के बीज उपलब्ध हैं. बीज Krishi Vigyan Kendras और Krishi Seva Cooperative Societies के माध्यम से भी दिए जा रहे हैं. किसान इन केंद्रों से अपने आधार कार्ड दिखाकर बीज खरीद सकते हैं.
पंजाब में देरी से हो रही गेहूं की बुवाई
वहीं, पंजाब में इस साल भयानक बाढ़ और लगातार बारिश की वजह से गेहूं की बुआई में देरी हुई है. गेहूं बोने का आदर्श समय 15 नवंबर तक था, लेकिन इस बार खेती का रकबा पिछले साल के मुकाबले 4.85 लाख हेक्टेयर कम रहा. अब तक केवल 30.14 लाख हेक्टेयर में ही गेहूं बोया गया है, जबकि पिछले रबी सीजन में यह 35 लाख हेक्टेयर था. बुआई में देरी के पीछे कई कारण हैं, जैसे नदियों के उफान से खेतों में गाद जमा होना, 5,300 एकड़ से ज्यादा जमीन बह जाना और दक्षिण मालवा में कपास की कटाई में देरी.