दिसंबर में खाद बाजार का ट्रेंड बदला, यूरिया बना किसानों की पहली पसंद, DAP की बिक्री घटी

दिसंबर का महीना रबी सीजन के लिहाज से बेहद अहम माना जाता है. इस दौरान गेहूं, चना, सरसों और अन्य फसलों की बुवाई जोरों पर रहती है. ऐसे में किसानों की पहली पसंद यूरिया बना हुआ है. आंकड़ों के अनुसार, 1 से 12 दिसंबर के बीच यूरिया की बिक्री 21.55 लाख टन रही, जबकि पिछले साल इसी अवधि में यह 17.97 लाख टन थी.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 20 Dec, 2025 | 09:44 AM

Urea Sales December: रबी सीजन के बीच दिसंबर महीने में देश के खाद बाजार में दिलचस्प बदलाव देखने को मिला है. खेतों में बुवाई तेज होने के साथ किसानों की जरूरतें भी बदल रही हैं, जिसका सीधा असर उर्वरकों की बिक्री पर पड़ा है. ताजा सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 1 से 12 दिसंबर के बीच यूरिया की बिक्री में करीब 20 प्रतिशत की जोरदार बढ़ोतरी दर्ज की गई है, जबकि डीएपी की बिक्री में गिरावट देखने को मिली है. सरकार का कहना है कि देशभर में खाद का पर्याप्त भंडार मौजूद है और किसी भी तरह की कमी की स्थिति नहीं है.

रबी बुवाई के बीच यूरिया की मांग बढ़ी

बिजनेस लाइन की रिपोर्ट के अनुसार, दिसंबर का महीना रबी सीजन के लिहाज से बेहद अहम माना जाता है. इस दौरान गेहूं, चना, सरसों और अन्य फसलों की बुवाई जोरों पर रहती है. ऐसे में किसानों की पहली पसंद यूरिया बना हुआ है. आंकड़ों के अनुसार, 1 से 12 दिसंबर के बीच यूरिया की बिक्री 21.55 लाख टन रही, जबकि पिछले साल इसी अवधि में यह 17.97 लाख टन थी. यानी करीब 20 प्रतिशत की बढ़ोतरी साफ तौर पर नजर आ रही है. विशेषज्ञ मानते हैं कि सस्ती कीमत और फसलों में तुरंत असर दिखने के कारण किसान यूरिया की ओर ज्यादा झुकाव दिखा रहे हैं.

डीएपी की बिक्री क्यों घटी?

जहां यूरिया की मांग बढ़ी है, वहीं डीएपी की बिक्री में कमी दर्ज की गई है. इस साल 1 से 12 दिसंबर के बीच डीएपी की बिक्री 4.22 लाख टन रही, जबकि पिछले साल इसी अवधि में यह 4.76 लाख टन थी. जानकारों के मुताबिक कई राज्यों में शुरुआती बुवाई के दौरान डीएपी का ज्यादा इस्तेमाल पहले ही हो चुका है, जिससे दिसंबर में इसकी मांग अपेक्षाकृत कम रही. इसके अलावा कुछ किसान डीएपी के ऊंचे दामों और उपलब्ध विकल्पों की वजह से भी इससे दूरी बना रहे हैं.

अन्य उर्वरकों की स्थिति भी बदली

डीएपी के अलावा म्यूरिएट ऑफ पोटाश यानी एमओपी और सिंगल सुपर फॉस्फेट की बिक्री में भी हल्की गिरावट देखी गई है. एमओपी की बिक्री 0.95 लाख टन से घटकर 0.88 लाख टन रही, जबकि एसएसपी की बिक्री 2.25 लाख टन से घटकर 2.11 लाख टन दर्ज की गई. इसके उलट मिश्रित यानी कॉम्प्लेक्स उर्वरकों की बिक्री में मामूली बढ़त देखने को मिली है. इनकी बिक्री 5.34 लाख टन से बढ़कर 5.45 लाख टन हो गई.

सरकार का दावा: खाद की कोई कमी नहीं

सरकार ने साफ किया है कि देश में सभी प्रमुख उर्वरकों का स्टॉक ‘आरामदायक’ स्तर पर मौजूद है. 12 दिसंबर तक उपलब्धता के आंकड़ों के अनुसार, यूरिया का भंडार 66.56 लाख टन, डीएपी का 20.67 लाख टन, एमओपी का 7.09 लाख टन, कॉम्प्लेक्स उर्वरकों का 40.13 लाख टन और एसएसपी का 20.96 लाख टन दर्ज किया गया है. कृषि मंत्रालय के मुताबिक यह भंडार पूरे दिसंबर महीने की मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त है.

राज्यों से मिल रहे इनपुट पर तय होती है मांग

कृषि मंत्रालय राज्यों से मिलने वाले फीडबैक के आधार पर हर महीने खाद की मांग का अनुमान लगाता है. दिसंबर महीने के लिए यूरिया की मांग 43.78 लाख टन, डीएपी की 8.13 लाख टन, एमओपी की 2.80 लाख टन, कॉम्प्लेक्स की 15.26 लाख टन और एसएसपी की 4.85 लाख टन आंकी गई है. आमतौर पर अक्टूबर से जनवरी के बीच रबी बुवाई के कारण खाद की बिक्री अपने चरम पर रहती है.

उत्तर प्रदेश में निगरानी और सख्ती

हाल के दिनों में कुछ राज्यों, खासकर उत्तर प्रदेश से यूरिया की किल्लत और ओवरचार्जिंग की शिकायतें सामने आई थीं. इसे गंभीरता से लेते हुए राज्य के मुख्य सचिव ने अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि हर बिक्री केंद्र पर न्यूनतम 25 टन यूरिया उपलब्ध रहे. साथ ही निजी विक्रेताओं द्वारा अधिक कीमत वसूलने की शिकायत मिलने पर लाइसेंस रद्द करने और एफआईआर दर्ज करने के निर्देश भी दिए गए हैं.

सब्सिडी का बोझ और आगे की चुनौती

खाद की बढ़ती खपत के साथ सरकार पर सब्सिडी का बोझ भी लगातार बढ़ रहा है. चालू वित्त वर्ष में सरकार ने खाद सब्सिडी के लिए अतिरिक्त बजट प्रावधान किया है, ताकि किसानों को समय पर और उचित कीमत पर उर्वरक मिलते रहें. विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले समय में संतुलित उर्वरक उपयोग को बढ़ावा देना और डीएपी जैसे फॉस्फेट उर्वरकों की खपत को स्थिर करना सरकार और कृषि क्षेत्र दोनों के लिए बड़ी चुनौती होगी.

कुल मिलाकर, दिसंबर में खाद की तस्वीर यह संकेत दे रही है कि किसान यूरिया पर ज्यादा निर्भर हो रहे हैं, जबकि डीएपी की मांग में अस्थायी नरमी आई है. सरकार का भरोसा है कि पर्याप्त स्टॉक और कड़ी निगरानी से रबी सीजन में किसानों को किसी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा.

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