स्वाद और कीमत में बासमती से भी दो कदम आगे, 240 रुपये किलो रेट.. मिठाई बनाने में होता है इस्तेमाल

गोबिंदभोग चावल, बंगाल का मशहूर सुगंधित और स्वादिष्ट चावल है. इसे GI टैग मिला हुआ है. इसे भोग, पुलाव और मिठाइयों में इस्तेमाल किया जाता है. कम बारिश और कीटों से सुरक्षित यह फसल लगभग 30,000 हेक्टेयर में उगती है. पोषक तत्वों से भरपूर, यह फैट-बर्निंग और पचने में आसान है.

Kisan India
नोएडा | Updated On: 23 Nov, 2025 | 02:36 PM

जब भी सुगंधित और स्वादिष्ट चावल की बात होती है, तो लोगों के जेहन में सबसे पहले बासमती का नाम उभरकर सामने आता है. लोगों को लगता है कि बासमती ही सबसे ज्यादा स्वादिष्ट और खुशबूदार चावल है, लेकिन ऐसे बात नहीं है. बासमती से भी ज्यादा टेस्टी और कीमती चावल की किस्मों की खेती देश में की जाती है. इन्हीं किस्मों में से एक है गोबिंदभोग चावल. इसकी खेती पश्चिम बंगाल में की जाती है और इसे जीआई टैग भी मिला हुआ है. यह स्वाद और कीमत में बासमती से भी दो कदम आगे है. तो आइए जानते हैं इस चावल के बारे में.

अगर गोबिंदभोग चावल की खासियत के बारे में बात करें तो यह छोटा, सुगंधित और बेहद स्वादिष्ट होता है. बंगाल में यह चावल भोग, पुलाव और पारंपरिक मिठाइयों में खूब इस्तेमाल होता है. जीआई-टैग वाला यह चावल अपने मक्खनी सुगंध और मुलायम, हल्का चिपचिपा टेक्सचर की वजह से खास माना जाता है. यही वजह है कि गोबिंदभोग चावल दुर्गा पूजा और मंदिरों  में प्रसाद का अहम हिस्सा बन गया है. सामान्य चावल के मुकाबले इसका स्वाद बहुत अच्छा होता है. इसलिए इसमें ज्यादा मसालों की जरूरत नहीं पड़ती. अगर आपको सुगंध और सुकून देने वाला खाना पसंद है, तो यह चावल आपके भोजन में बंगाली स्वाद का जादू भर देगा.

साल 2017 में मिला जीआई टैग का दर्जा

पश्चिम बंगाल का बर्धमान जिला गोबिंदभोग चावल की खेती  के लिए खास पहचान रखता है. इसे आम धान की फसल के बाद काटा जाता है और कई मायनों में यह सामान्य धान से अलग होता है. ज्यादा बारिश से इस फसल को नुकसान कम होता है और इसमें कीटों का खतरा भी बहुत कम रहता है. इसकी पैदावार अच्छी होती है, जिससे किसानों की आय सुरक्षित रहती है. साल 2017 में इसे GI टैग मिला, जिसके बाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी इसकी मांग तेजी से बढ़ी है.

ऐसा माना जाता है कि गोबिंदभोग चावल में मौजूद प्रोटीन शरीर द्वारा भूरे चावल की तुलना में जल्दी और बेहतर अवशोषित होता है. यह चावल आसानी से पच जाता है और ज्यादा पोषक वाला होता है. इसलिए आयुर्वेद में इसका उपयोग शरीर के असंतुलन को ठीक करने में भी किया जाता है. हालांकि, अगर आपको कोई स्वास्थ्य समस्या है, तो डॉक्टर से सलाह लेना जरूरी है.

6 महीने में डबल हो गई कीमत

बता दें कि इस गोबिंदभोग चावल का सबसे ज्यादा इस्तेमाल दुर्गा पूजा के दौरान प्रसाद बनाने में किया जाता है. यही वजह है कि इस साल इसकी कीमत 6 महीने में ही डबल हो गई. मार्च में जहां इसका रिटेल भाव 95 से 100 रुपये प्रति किलो था, वहीं अब यह 195 से 200 रुपये तक पहुंच गया है. कुछ ब्रांड इसे 220 से 240 रुपये प्रति किलो तक बेच रहे हैं. कहा जा रहा है कि कम उत्पादन और पिछले साल चक्रवात के कराण करीब 25 फीसदी तक फसल को नुकसान पहुंचा. ऐसे में पैदावार में गिरावट आने से कीमतो में बढ़ोतरी हो गई.

इन देशों में होती है सप्लाई

खास बात यह है कि पिछले कुछ महीनों में Gulf देशों से गोबिंदभोग की मांग काफी बढ़ी है. कोलकाता के चावल निर्यातकतों का कहना है कि कम उत्पादन और आयातक देशों की ज्यादा मांग से कीमतें बढ़ी हैं. नई फसल आने पर दाम घटने की उम्मीद है. ऐसे गोबिंदभोग चावल की कुवैत, यूएई और कनाडा जैसे देशों में अच्छी मांग है. पहले बंगाल ही इसका प्रमुख निर्यातक था, लेकिन अब उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड  भी इसकी खेती और निर्यात कर रहे हैं. हालांकि खबर है कि खाड़ी देशों ने यूपी से आई खेपों को गुणवत्ता के कारण वापस करना शुरू कर दिया है, जिससे बंगाल के गोबिंदभोग की मांग और बढ़ गई

30,000 हेक्टेयर में होती है खेती

राज्य में गोबिंदभोग की खेती लगभग 30,000 हेक्टेयर में होती है और सालाना उत्पादन  थोड़ा सा 1 लाख टन से अधिक रहता है. यह चावल पूर्व और पश्चिम बर्धमान, हुगली, नदिया, बांकुरा, बीरभूम, हावड़ा और उत्तर 24 परगना जिलों में उगाया जाता है. चिकित्सकीय रूप से यह भी पाया गया है कि गोबिंदभोग चावल शरीर की फैट-बर्निंग प्रक्रिया को तेज करता है. इसमें मौजूद पोषक तत्व लीवर को वसा बाहर निकालने में मदद करते हैं.

खबर से जुड़े आंकड़े और तथ्य

  • गोबिंदभोग की खेती लगभग 30,000 हेक्टेयर में होती है
  • सालाना उत्पादन  1 लाख टन से अधिक है
  • प्रसाद के रूप में होता है गोबिंदभोग का इस्तेमाल
  • Gulf देशों में इसकी जबरदस्त मांग
  • साल 2017 में गोबिंदभोग को मिला जीआई टैग
  • पश्चिम बंगाल के कई जिलों में होती है गोबिंदभोग की खेती 

 

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Published: 23 Nov, 2025 | 02:29 PM

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