उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले का एक छोटा सा गांव, जिसका नाम है माचा, आज पूरे देश में “शुक्ला जी के मशहूर गन्ने के सिरके” के लिए जाना जाता है. यहां के सभापति शुक्ला ने मेहनत और जिद के दम पर सिरका उत्पादन का ऐसा बिजनेस खड़ा किया कि आज हर कोई इनकी मिसाल देता है. एक समय था जब खेतों की खेती में घाटा हो रहा था, पारिवारिक समस्याओं से मन टूट चुका था, लेकिन आज यही व्यक्ति सिरके से हर साल 40 लाख रुपये तक की आमदनी कर रहा है. इस कहानी में है संघर्ष, मेहनत, और गांव की एक पूरी तस्वीर जो आत्मनिर्भरता की मिसाल बन गई है.
माचा गांव बना ‘सिरके वाला गांव’
बस्ती जिले का माचा गांव अब ‘सिरके वाले गांव’ के नाम से जाना जाता है. राष्ट्रीय राजमार्ग 28 से गुजरते वक्त आपको जैसे ही अयोध्या पार कर बस्ती की सीमा में एंट्री मिलेगी, रास्ते में सिरके के बड़े-बड़े होर्डिंग्स नजर आते हैं- जैसे शुक्ला जी का मशहूर सिरका, यादव जी का सिरका, शकुंतला सिरक आदि. यह गांव अब सिरका उत्पादन में इतना आगे निकल गया है कि उत्तर प्रदेश, बिहार, उत्तराखंड, हरियाणा और दिल्ली तक इसका व्यापार फैल चुका है.
खेती में घाटा, फिर सिरके ने संभाली कमान
सभापति शुक्ला की कहानी 2001 से शुरू होती है जब पारिवारिक विवाद के चलते उन्हें अपने भाइयों से अलग होना पड़ा. खेती में घाटा हो रहा था, जीवन में दिशा नहीं थी. माचा गांव में सड़क किनारे एक फूस का छप्पर डालकर उन्होंने जीवन फिर से शुरू किया. पत्नी की सलाह पर खेत में उगाए गए गन्ने से गुड़ बनाने की सोची और स्थानीय बैंक से क्रेशर मशीन खरीदने के लिए लोन लिया. गुड़ का व्यापार शुरू हुआ और दो साल चला, लेकिन फिर बाजार में कीमतें गिर गईं और काम बंद करना पड़ा.
गन्ने के रस से बना स्वादिष्ट सिरका, जो सबको भा गया
एक रात जब गन्ने की फसल सूख रही थी और शुक्ला जी सोच रहे थे कि उसे जला दें, उनकी पत्नी ने सलाह दी कि क्यों न इससे सिरका बनाकर बांटा जाए. उन्होंने गन्ने को पेर कर रस निकाला और देशी तरीके से सिरका तैयार किया. फिर गांव के लोगों को मुफ्त में बाटना शुरू किया. सिरका इतना स्वादिष्ट था कि जो खाता, वह दोबारा लेने आता. यही से धीरे-धीरे गांव में सिरका बनाने की लहर चल पड़ी और अब पूरा गांव इस उद्योग से जुड़ चुका है.
बाबा ब्रांड के नाम से देशभर में फैला कारोबार
सभापति शुक्ला ने जो सिरका बनाया था, उसे लेकर फैजाबाद की एक दुकान पर गए. दुकानदार ने टेस्ट किया, ग्राहकों को बेचा और फिर डिमांड बढ़ गई. धीरे-धीरे उन्होंने पूरे उत्तर भारत में सप्लाई शुरू की. आज उनके सिरके को लोग “शुक्ला जी का मशहूर सिरका- बाबा ब्रांड के नाम से जानते हैं. उनके बनाए सिरके की सप्लाई अब पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, दिल्ली, महाराष्ट्र तक होने लगी है.
देसी तरीका और शुद्धता बनी सफलता की कुंजी
सभापति शुक्ला अपने उत्पाद की गुणवत्ता पर खास ध्यान देते हैं. सिरका बनाने में मिट्टी के बर्तनों का उपयोग होता है, और मसालों के लिए देसी तरीका अपनाया जाता है. सरसों का तेल, मसाले और अन्य सामग्रियां गांव से ही ली जाती हैं, ताकि शुद्धता बनी रहे. उनका कहना है कि मिलावट से दूर रहकर ही ग्राहकों का विश्वास जीता जा सकता है.
सरकार की मदद और खुद का ब्रांड
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ODOP योजना में सिरके को शामिल किया गया, जिससे इस कारोबार को एक नई पहचान मिली. सरकार की ओर से 25 फीसदी सब्सिडी और लोन की सुविधा भी दी गई, जिससे गांव के और लोगों ने भी यह कारोबार अपनाया. आज शुक्ला जी ने अयोध्या-बस्ती मार्ग पर बड़ी दुकान खोल ली है, जहां करीब 7 लोग काम करते हैं. यहां सिरके के अलावा आंवला मुरब्बा, देशी नमकीन और कई देसी उत्पाद मिलते हैं.
उनकी दुकान पर बड़े अधिकारी, IAS-IPS से लेकर आम लोग तक आते हैं और उनकी बिना मिलावट वाली क्वालिटी की तारीफ करते नहीं थकते. एक लीटर सिरका बनाने में जहां 25–30 रुपये का खर्च आता है, वहीं उसे 50 रुपये प्रति लीटर बेचा जाता है. साल भर में 40 लाख रुपये की बिक्री होती है, जिसमें से लगभग 20 लाख की सीधी कमाई होती है.