बात जब बलिदान की हो तो हम हमेशा हमारे देश के वीर जवानों की बात करते हैं, उनकी शहादत के किस्से आपस में साझा करते हैं. लेकिन कुछ कहानियां ऐसी होती हैं जहां एक आम नागरिक , एक मामूली सा किसान भी अपने हक की लड़ाई लड़ने के लिए अपने जीवन की आहुति दे देता है, और ये उनके बलिदान की ही ताकत होती है कि उनकी मांग के आगे सरकार को झुकना पड़ता है. दऱअसल, हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में स्थित मुण्डेरवा चीनी मिल की, जिससे किसानों के संघर्ष और बलिदान की कहानी जुड़ी हुई है. जो कि भारत में हजारों किसानों के जीवन से जुड़ी एक ऐतिहासिक मिसाल है.
1932 में हुई मिल की शुरुआत
साल 1932 में उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में मुण्डेरवा चीनी मिल की स्थापना की गई, जिसे ‘माधो महेश शुगर मिल प्राइवेट लिमिटेड’ के नाम से जाना जाता था. इस मिल से स्ती, संतकबीरनगर और आसपास के किसानों की आमदनी जुड़ी हुई थी. क्योंकि इन जगहों के गन्ना किसान इस मिल में अपना गन्ना बेचते थे. साल 1984 में ये मिल प्रदेश के अधीन आ गई और साल 1989 में सरकार की मदद से इस मिल का विस्तार भी किया गया . लेकिन आगे चलकर साल 1998 में घाटे का हवाला देकर मिल को बंद कर दिया गया. इसके साथ ही बंद हो गई तमाम किसानों की उम्मीदें . बता दें कि, मिल के बंद होने से 700 अस्थायी और 259 स्थायी कर्मचारियों की रोजी रोटी छिन गई.