सेब बागानों में मार्सोनिना और अल्टरनेरिया बीमारी का कहर, कृषि वैज्ञानिक ने फल को बचाने का तरीका बताया

भारी बारिश से पहाड़ी इलाकों के बागीचे मार्सोनिना और अल्टरनेरिया बीमारी की चपेट में हैं. अधिकांश बगीचों में सेब के पेड़ों के पत्ते समय से पहले पीले होकर झड़ गए हैं. जबकि, फल की क्वालिटी खराब हो रही है. इस बीमारी ने सेब किसानों की चिंता बढ़ा दी है.

नोएडा | Published: 18 Sep, 2025 | 03:58 PM

पहाड़ों में सेब किसानों के लिए बागानों में फैली दो बीमारियों मुसीबत बन गई हैं. इन बीमारियों की वजह से सेब के पेड़ों के पत्ते समय से पहले पीले होकर झड़ रहे हैं. जबकि, छोटे फल जल्दी पक रहे हैं. इससे क्वालिटी खराब होने का खतरा बढ़ गया है. हिमाचल प्रदेश के शिमला समेत कई हिस्सों में सेब किसान पहले भारी बारिश और भूस्खलन से पीड़ित रहे हैं और अब उन्हें दो फफूंद बीमारियों की वजह से फसल खराब होने का खतरा चिंता बढ़ा रहा है. क्योंकि, अगले सीजन में फसल घटने का खतरा है. हिमाचल उद्यान विभाग ने सेब किसानों को फसल सुरक्षित रखने का तरीका बताया है.

भारी बारिश से शिमला के ऊपरी क्षेत्र के बागीचे मार्सोनिना और अल्टरनेरिया बीमारी की चपेट में आ गए हैं. लगातार भारी बारिश ने शिमला जिला के ऊपरी क्षेत्रों में बागवानों की चिंता बढ़ा दी है. रोहड़ू, चिड़गांव, जुब्बल और कोटखाई के अधिकांश बगीचों में सेब के पेड़ों के पत्ते समय से पहले पीले होकर झड़ गए हैं. इस असमय पतझड़ से सेब की पौध कमजोर हो रही है और अगले सीजन की फसल पर भी संकट मंडरा रहा है और सेब कारोबार प्रभावित होगा.

दो तरह के फफूंद रोग ने पौधों को चपेट में लिया

विशेषज्ञों के अनुसार मार्सोनिना और अल्टरनेरिया जैसे फफूंद रोग लगातार बारिश और नमी के चलते तेजी से फैल रहे हैं. इन बीमारियों की शुरुआत पत्तों पर काले और लाल धब्बे पड़ने से होती है. धीरे-धीरे पत्ते पीले होकर गिर जाते हैं, जिससे पेड़ भोजन बनाने में असमर्थ हो जाता है. इसका सीधा असर सेब की ग्रोथ और रंग पर पड़ रहा है. बागवानों का कहना है कि समय पर दवाइयों का छिड़काव करने के बावजूद लगातार बारिश की वजह से दवाइयों का असर नहीं हो पाया.

पौधों की ग्रोथ के साथ फल की क्वालिटी पर बुरा असर

सेब की खेती करने वाले बागवान वीरेन्द्र शर्मा ने बताया कि इससे पौधों की ग्रोथ पर बुरा असर पड़ रहा है और फसल को बड़ा नुकसान हो सकता है. उन्होंने कहा कि पहले भारी बारिश और अंधड़ की वजह से फसल प्रभावित हुई और भूस्खलन से कई बगीचों में पौधों को नुकसान पहुंचा है. उन्होंने कहा कि इससे मौजूदा फसल पर बुरा असर पड़ा है और फलों की क्वालिटी में भी गिरावट आई है.

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बाग की अधिक नमी हटानी होगी

रोहड़ के पूर्व उद्यान अधिकारी आगर दास ने कहा कि 2025 में लगातार बारिश के कारण यह बीमारी और भी ज्यादा फैल गई है. उनका कहना है कि नमी की अधिकता और तापमान में असंतुलन से फफूंद रोग पनपते हैं, और इस बार दवाइयां भी बेअसर साबित हो रही हैं. उन्होंने कहा कि किसान फफूंद हटाने के लिए बागान से पानी की निकासी तुरंत करें और कीचड़ खत्म करें. बाढ़ से सेब बागानों में मिट्टी की ऊपरी सतह का सूखना जरूरी है नहीं तो बीमारी बढ़ेगी जो किसानों को नुकसान पहुंचाएगी.

निम्नलिखित फसलों में से किस फसल की खेती के लिए सबसे कम पानी की आवश्यकता होती है?

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गन्ना
0%
धान (चावल)
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बाजरा (मिलेट्स)
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केला
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