नवंबर से शुरू होगी गन्ना पेराई, लेकिन किसानों और मिलर्स की बढ़ी मुश्किलें, जानिए क्या है वजह

गन्ना पेराई सीजन आमतौर पर अक्टूबर में शुरू हो जाता है, लेकिन इस बार दीपावली के बाद ही मजदूर काम शुरू करेंगे. मजदूर संघों का कहना है कि त्योहार से पहले काम पर लौटना संभव नहीं है.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 4 Oct, 2025 | 08:20 AM

भारत के सबसे बड़े गन्ना उत्पादक राज्यों में से एक महाराष्ट्र इस बार बड़ी चुनौती का सामना कर रहा है. सरकार ने नवंबर 1 से गन्ना पेराई सीजन शुरू करने की अनुमति दे दी है, लेकिन लगातार हो रही भारी बारिश ने गन्ने की फसल और उससे बनने वाली चीनी की रिकवरी पर बड़ा खतरा खड़ा कर दिया है. विशेषज्ञों का मानना है कि अगर बारिश का असर इसी तरह जारी रहा तो किसानों और चीनी मिलों दोनों को भारी आर्थिक नुकसान झेलना पड़ सकता है.

चीनी उत्पादन पर असर

मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की अध्यक्षता में हुई मंत्रीमंडलीय बैठक में यह स्पष्ट किया गया कि 2025-26 का पेराई सीजन दीपावली के बाद शुरू होगा. बारिश और बाढ़ से गन्ने की फसल को खासा नुकसान हुआ है. राज्य सरकार का कहना है कि अधिक नमी के कारण गन्ने से चीनी की रिकवरी प्रतिशत घट सकता है. इसका सीधा असर चीनी उत्पादन पर पड़ेगा.

मिलर्स की चिंताएं

राज्य की चीनी मिलों ने सरकार से वित्तीय मदद की मांग की है. उनका कहना है कि पिछली बार भी कई मिलें किसानों को पूरी तरह एफआरपी (Fair and Remunerative Price) नहीं दे पाई थीं. अब जब इस सीजन में रिकवरी दर कम होगी, तो उत्पादन घटेगा और आय पर और दबाव बढ़ेगा. मिलर्स का कहना है कि ऐसी स्थिति में बिना सरकारी सहयोग पेराई सीजन को सुचारू रूप से चलाना बेहद मुश्किल होगा.

किसानों पर दोहरी मार

सरकार ने इस बार एक नई शर्त भी लागू की है. सभी चीनी मिलों को प्रति टन गन्ने पर 10 रुपये मुख्यमंत्री राहत कोष और 5 रुपये बाढ़ प्रभावित किसानों की मदद के लिए जमा करना होगा. हालांकि, मिलर्स और किसान संगठनों का कहना है कि यह कदम उचित नहीं है. गन्ना किसान पहले से ही बाढ़ और बारिश से तबाह हो चुके हैं, ऐसे में यह अतिरिक्त बोझ उनकी मुश्किलें और बढ़ा देगा.

मजदूरों की उपलब्धता का संकट

गन्ना पेराई सीजन आमतौर पर अक्टूबर में शुरू हो जाता है, लेकिन इस बार दीपावली के बाद ही मजदूर काम शुरू करेंगे. मजदूर संघों का कहना है कि त्योहार से पहले काम पर लौटना संभव नहीं है. इसका असर यह होगा कि पेराई सीजन की शुरुआत देरी से होगी और इसका सीधा प्रभाव मिलों की आय और किसानों के भुगतान पर पड़ेगा.

क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, विशेषज्ञों का कहना है कि महाराष्ट्र में चीनी उद्योग को इस बार भारी चुनौती का सामना करना पड़ेगा. एक ओर बारिश से फसल को नुकसान हुआ है, वहीं दूसरी ओर रिकवरी कम होने से उत्पादन घटेगा. किसानों को समय पर भुगतान दिलाना और मिलों को चालू रखना सरकार के लिए सबसे बड़ी प्राथमिकता होगी.

सरकार का कहना है कि वह किसानों और मिलों के हितों की रक्षा के लिए सभी संभव कदम उठाएगी. लेकिन किसानों का मानना है कि केवल कर लगाने से समस्या हल नहीं होगी, बल्कि वास्तविक वित्तीय मदद और नुकसान का सही आकलन जरूरी है.

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