पंजाब और हरियाणा समेत देश के कई हिस्सों में धान की कटाई शुरू हो चुकी है. कई जगह तो 1 अक्तूबर से फसल की सरकारी खरीद भी शुरू हो जाएगी. हालांकि, इस बार ज्यादा बारिश और बाढ़ की स्थितियों के चलते किसान फसल में कई तरह के रोग और कीटों की समस्या से परेशान हैं. इन दिनों जब धान पक चुकी है तब तना छेदक कीट, ब्राउन प्लांट हॉपर, गॉल मिज और लीफ फोल्डर जैसे कीट और बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट जैसी बीमारियां फसल को नुकसान पहुंचा रही हैं.
धान किसान जलवायु परिवर्तन और कीटों की वजह से ज्यादा चिंता महसूस कर रहे हैं. बढ़ता तापमान, अनिश्चित मॉनसून और ज्यादा नमी ऐसे हालात बना रहे हैं जिससे कीटों का हमला और फफूंदीजनित रोग बढ़ रहे हैं. यह पैदावार और अनाज की क्वालिटी दोनों के लिए खतरा है. अच्छी आमदनी वाली फसल पाने के लिए किसानों को जलवायु अनुकूल तरीके और असरदार फसल सुरक्षा उपाय अपनाना जरूरी है. कृषि क्षेत्र की दिग्गज कंपनी धानुका एग्रीटेक की ओर से कहा गया है कि हमारा उद्देश्य है कि इस अहम समय पर हम किसानों को आधुनिक और पर्यावरण के अनुकूल उत्पादों से मजबूत करें ताकि वे अपनी फसल की रक्षा कर सकें. धानुका ने किसानों को धान फसल बचाव के उपाय भी बताए हैं.
खेत में नमी का संतुलन बनाएं किसान
अनियमित बारिश से धान के खेतों में कभी पानी भर जाता है तो कभी सूखा पड़ता है. ऐसे में AWD सिंचाई, सही मेढ़ और लेजर लैंड लेवलिंग से पानी की बचत, नमी का संतुलन और कीटों का प्रकोप कम किया जा सकता है. ये उपाय फसल की सेहत और पैदावार दोनों को बेहतर बनाते हैं.
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डिजिटल तरीकों का इस्तेमाल बढ़ाएं
डिजिटल सलाह, सेंसर निगरानी और ड्रोन छिड़काव से किसान समय और संसाधन बचाते हुए सटीक समाधान अपना सकते हैं. धानुका बायोपेस्टिसाइड्स, सिस्टमिक कीटनाशक और प्रोटेक्टिव फफूंदनाशी को मिट्टी सुधारकों के साथ मिलाकर सुरक्षित और असरदार फसल सुरक्षा प्रदान करता है. इन क्लाइमेट-स्मार्ट तरीकों से किसान अपनी फसल को कीट व मौसम के खतरे से बचाकर अधिक पैदावार और बेहतर क्वालिटी हासिल कर सकते हैं.
फेरोमोन और लाइट ट्रैप से कीट नियंत्रण करें
धान पकने के समय तना छेदक कीट, ब्राउन प्लांट हॉपर कीट, गॉल मिज और लीफ फोल्डर जैसे कीट तथा ब्लास्ट, शीथ ब्लाइट और बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट जैसी बीमारियां गंभीर नुकसान पहुंचाती हैं. इनसे बचाव के लिए किसानों को आईपीएम (Integrated Pest Management) अपनाना चाहिए. फेरोमोन और लाइट ट्रैप से शुरुआती पहचान, नीम और सूक्ष्मजीव उत्पाद से प्राकृतिक नियंत्रण, सिस्टमिक कीटनाशक से कीट प्रबंधन और दोहरी क्षमता वाले फफूंदनाशी से रोग नियंत्रण कर फसल सुरक्षित रखी जा सकती है.
इन खाद और पोषक तत्वों का इस्तेमाल बढ़ाएं
स्वस्थ मिट्टी से ही मजबूत फसल पैदा होती है. इसलिए हरी खाद, बायोफर्टिलाइज़र और जैविक सुधारक (ऑर्गेनिक खाद) का इस्तेमाल मिट्टी को पोषण देता है और सूक्ष्म जीवों की संख्या बढ़ाता है. जिंक और आयरन जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों का संतुलित उपयोग बालियों के बंझपन को कम करता है और दानों की भराई को बेहतर बनाता है. साथ ही जलवायु सहनशील धान की किस्मों का उपयोग करने से किसान बदलते मौसम की परिस्थितियों को झेल सकते हैं.