Buffalo Farming : गांवों में जब भी मजबूत कद-काठी और भरपूर दूध देने वाली भैंस की बात होती है, तो एक खास नस्ल का नाम सबसे पहले लिया जाता है. भारी शरीर, दमदार बनावट और दूध से भरी बाल्टी-यही वजह है कि पशुपालक इसे प्यार से बाहुबली भैंस कहते हैं. बदलते समय में पशुपालन सिर्फ सहारा नहीं, बल्कि कमाई का मजबूत साधन बनता जा रहा है. ऐसे में उन्नत नस्ल की सही जानकारी पशुपालकों की आमदनी को नई उड़ान दे सकती है.
पशुपालन बना कमाई का मजबूत जरिया
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, पशुपालन आज गांवों में आत्मनिर्भरता का बड़ा साधन बन रहा है. गाय, भैंस, बकरी और मुर्गी पालन से दूध, मांस और अंडों की बिक्री कर किसान अच्छी कमाई कर रहे हैं. सरकार भी पशुपालन को बढ़ावा देने के लिए योजनाएं चला रही है. लेकिन सही नस्ल की जानकारी न होने से कई बार पशुपालकों को नुकसान उठाना पड़ता है. ऐसे में जफराबादी जैसी उन्नत भैंस नस्ल पशुपालकों के लिए फायदेमंद साबित हो रही है.
क्यों खास है ‘बाहुबली’ जफराबादी भैंस
जफराबादी नस्ल की भैंस अपनी मजबूत कद-काठी और अलग पहचान के कारण दूसरी नस्लों से बिल्कुल अलग मानी जाती है. इसका सिर बड़ा, शरीर भारी और हड्डियां मजबूत होती हैं. इसके सींग गर्दन के किनारों की ओर मुड़े होते हैं और कान लंबे, चौड़े व नीचे की ओर लटके रहते हैं. आंखें बड़ी, गोल और चमकदार होती हैं. इन्हीं खूबियों की वजह से इसे बाहुबली कहा जाता है. यह भैंस देखने में जितनी ताकतवर लगती है, उतनी ही दमदार दूध देने में भी मानी जाती है.
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दूध उत्पादन और वजन में नंबर वन
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, जफराबादी नस्ल की भैंस एक दिन में औसतन 15 से 16 लीटर दूध देने की क्षमता रखती है. सबसे बड़ी बात यह है कि इसके दूध में फैट की मात्रा ज्यादा होती है, जिससे दूध और उससे बने उत्पादों की कीमत अच्छी मिलती है. एक ब्यांत में यह भैंस करीब 3000 से 3500 लीटर दूध दे सकती है. वजन की बात करें तो इसका औसत वजन 800 से 1000 किलो तक होता है. भारी शरीर के बावजूद यह नस्ल अलग-अलग मौसम में आसानी से ढल जाती है.
रखरखाव आसान, मुनाफा ज्यादा
जफराबादी भैंस की एक और खास बात यह है कि इसके रखरखाव में ज्यादा खर्च नहीं आता. सामान्य चारा, साफ पानी और समय पर देखभाल से यह अच्छी तरह पाली जा सकती है. यही कारण है कि अलग-अलग राज्यों में पशुपालकों की यह पहली पसंद बनती जा रही है. बाजार में इसकी कीमत आमतौर पर 80 हजार से 1 लाख रुपये तक बताई जाती है. शुरुआती लागत के बाद दूध उत्पादन से होने वाली कमाई इस खर्च को जल्दी पूरा कर देती है.