Cattel Feed: बरसात और बाढ़ के मौसम में हर साल किसानों और पशुपालकों को हरे चारे की भारी समस्या का सामना करना पड़ता है. कई बार तो हालात ऐसे हो जाते हैं कि पशुओं के लिए खाने को हरा चारा बिल्कुल भी नहीं बचता. लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि किसान सिर्फ सूखे भूसे का उपयोग करके भी पौष्टिक और प्रोटीन से भरपूर चारा तैयार कर सकते हैं. यह तरीका आसान है और इससे पशुओं की सेहत भी अच्छी रहती है, साथ ही दूध उत्पादन भी बढ़ जाता है.
बारिश और बाढ़ में बढ़ जाती है चारे की कमी
हर साल मौसम बदलने के साथ पशुपालकों को चारे की समस्या झेलनी पड़ती है. खासकर बारिश और बाढ़ वाले इलाकों में यह दिक्कत और ज्यादा बढ़ जाती है. इस बार भी कई जगहों पर बाढ़ ने हरे चारे की कमी खड़ी कर दी है. कई गांवों में तो पशुओं के लिए हरा चारा पूरी तरह खत्म हो चुका है. ऐसे में किसान परेशान हो जाते हैं कि आखिर पशुओं को पोषण कैसे दिया जाए.
भूसा भी बन सकता है पौष्टिक आहार
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, किसान चाहें तो सूखे भूसे को ही पौष्टिक चारा बना सकते हैं. भूसा आमतौर पर सूखा और कम पोषक माना जाता है, लेकिन जब इसे यूरिया से उपचारित किया जाता है, तो इसकी पौष्टिकता और पचने की क्षमता 50 से 60 प्रतिशत तक बढ़ जाती है. इससे पशु को ज्यादा ऊर्जा मिलती है और दूध की मात्रा भी बढ़ सकती है.
भूसे को यूरिया से उपचारित करने की आसान विधि
विशेषज्ञों के अनुसार, 1 क्विंटल भूसे को चार हिस्सों में बांटकर छायादार जगह पर रखना चाहिए. इसके बाद 4 किलो यूरिया को 50 लीटर पानी में घोलकर एक मिश्रण तैयार किया जाता है. इस घोल को भूसे के ऊपर छिड़कते हुए मिलाना होता है ताकि हर हिस्सा गीला हो जाए. जब यह प्रक्रिया पूरी हो जाती है तो भूसे को 21 दिनों तक ढककर रखना पड़ता है. इस दौरान भूसा यूरिया से उपचारित होकर पौष्टिक चारा बन जाता है.
खिलाने से पहले बरतें सावधानी
यूरिया उपचारित भूसे को सीधे पशुओं को नहीं खिलाना चाहिए. इसे पहले छायादार जगह पर 1 घंटे तक फैलाकर रखना जरूरी है. उसके बाद ही पशुओं को देना चाहिए. यूरिया में करीब 40 प्रतिशत नाइट्रोजन होता है, जो भूसे की पौष्टिकता कई गुना बढ़ा देता है. इसके साथ ही पशुओं को रोजाना 25 ग्राम नमक और 50 ग्राम खनिज मिश्रण भी देना चाहिए ताकि उन्हें पूरा पोषण मिल सके.
दूध देने वाले पशुओं के लिए खास फायदेमंद
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, ज्यादा दूध देने वाले पशुओं के लिए यूरिया उपचारित चारा और भी फायदेमंद है. इससे उनकी ऊर्जा की जरूरत पूरी होती है और दूध उत्पादन बढ़ जाता है. हालांकि ऐसे पशुओं को उनकी खुराक के हिसाब से थोड़ी ज्यादा मात्रा में चारा देना पड़ता है. अच्छी बात यह है कि यह चारा साधारण हरे चारे की तुलना में काफी सस्ता और आसानी से उपलब्ध हो जाता है. इससे किसानों का खर्च भी कम होता है और उन्हें अतिरिक्त चारा खरीदने की टेंशन नहीं रहती.
बिना सलाह के न करें प्रयोग
विशेषज्ञों की सलाह है कि किसान इस विधि को अपनाने से पहले अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र या पशु चिकित्सक से सलाह जरूर लें. जरा सी गलती भी पशुओं के लिए खतरनाक हो सकती है. यूरिया की मात्रा सही होना बहुत जरूरी है. इसके अलावा चारे को ढककर और सुरक्षित तरीके से रखना भी बेहद जरूरी है. अगर सावधानी रखी जाए तो यह तरीका किसानों और पशुपालकों के लिए बहुत कारगर साबित हो सकता है.