ठंड में चाय की पत्तियों की तोड़ाई पर लगे रोक, छोटे उत्पादकों की टी बोर्ड से अपील, जानिए क्यों

इस साल पश्चिम बंगाल के लिए पत्तियां तोड़ने की अंतिम तिथि 25 दिसंबर, और असम के लिए 20 दिसंबर तय करने की सिफारिश की गई है. चाय उत्पादकों का कहना है कि अगर ऐसा नहीं हुआ, तो कम गुणवत्ता वाली चाय बाजार में भर जाएगी और इससे उद्योग को बड़ा झटका लगेगा.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 28 Oct, 2025 | 03:16 PM

भारत में चाय केवल एक पेय नहीं, बल्कि एक संस्कृति है..सुबह की शुरुआत से लेकर दिन के अंत तक, हर घड़ी में एक कप चाय जैसे साथी बन जाती है. लेकिन चाय के इस सफर के पीछे मेहनत करने वाले छोटे चाय उत्पादक इन दिनों एक बड़ी चिंता में हैं. उन्होंने Tea Board of India से सर्दियों के दौरान चाय की पत्तियों की तोड़ाई (plucking) पर रोक लगाने की मांग की है. वजह? आने वाले साल की फसल की गुणवत्ता और चाय उद्योग का भविष्य.

सर्दियों में चाय की फसल क्यों हो जाती है कमजोर

दरअसल, जब तापमान गिरता है और सर्दी बढ़ती है, तो चाय के पौधे “डॉरमेंसी पीरियड” में चले जाते हैं. इसका मतलब है कि पौधों की वृद्धि बहुत धीमी हो जाती है. ऐसे में जो पत्तियां निकलती हैं, उनमें स्वाद और सुगंध कम होती है. छोटे चाय उत्पादकों का कहना है कि अगर इस समय भी पत्तियां तोड़ी जाती रहीं, तो न केवल गुणवत्ता गिरती है बल्कि बाजार में “लो-क्वालिटी टी” की बाढ़ आ जाती है. इससे न सिर्फ किसानों को नुकसान होता है बल्कि भारतीय चाय की साख भी प्रभावित होती है.

Tea Board से क्या मांग की गई?

बिजनेस लाइन की खबर के अनुसार, CISTA (Confederation of Indian Small Tea Growers Associations) के अध्यक्ष बिजॉय गोपाल चक्रवर्ती ने टी बोर्ड से अपील की है कि हर साल की तरह इस बार भी सर्दियों में पत्तियां तोड़ने की अंतिम तिथि तय की जाए. उन्होंने कहा कि पिछले आठ सालों से टी बोर्ड ऐसे आदेश जारी कर रहा है ताकि फसल की गुणवत्ता बनी रहे.

इस साल पश्चिम बंगाल के लिए पत्तियां तोड़ने की अंतिम तिथि 25 दिसंबर, और असम के लिए 20 दिसंबर तय करने की सिफारिश की गई है. उनका कहना है कि अगर ऐसा नहीं हुआ, तो कम गुणवत्ता वाली चाय बाजार में भर जाएगी और इससे उद्योग को बड़ा झटका लगेगा.

चाय के वेस्ट का पुन: उपयोग

CISTA ने टी बोर्ड से एक और अहम मांग की है चाय के वेस्ट (tea waste) को पूरी तरह नष्ट किया जाए ताकि उसका पुन: उपयोग न हो सके.

दरअसल, कई बार फैक्ट्रियों में बचा हुआ चाय का कचरा दोबारा प्रोसेस कर बाजार में बेच दिया जाता है. यह न केवल उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, बल्कि असली उत्पादकों के मुनाफे पर भी असर डालता है.

अगले सीजन की तैयारी भी जरूरी

संगठन ने यह भी कहा है कि टी बोर्ड को दिसंबर तक अगले साल की तुड़ाई शुरू करने की तारीख की घोषणा भी करनी चाहिए, ताकि किसान समय पर छंटाई जैसे काम पूरे कर सकें. समय से तैयारी न होने पर पौधों की बढ़वार और उत्पादन दोनों प्रभावित हो सकते हैं.

छोटे उत्पादकों की बड़ी उम्मीदें

भारत में चाय का एक बड़ा हिस्सा इन्हीं छोटे उत्पादकों से आता है. वे उम्मीद कर रहे हैं कि सरकार और टी बोर्ड उनकी बात सुनेगी ताकि उनकी मेहनत का सही मूल्य मिल सके और भारतीय चाय की पहचान उसकी खुशबू, रंग और स्वाद बरकरार रह सके.

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