Buffalo Farming : ग्रामीण परिवारों के लिए पशु सिर्फ पशु नहीं होते, बल्कि रोजमर्रा की कमाई का सबसे भरोसेमंद साथी होते हैं. खासकर भैंस, जो दूध, घी, दही, मक्खन-सब कुछ दे देती है. लेकिन भैंस पालन आसान तभी होता है जब किसान को नस्ल, दूध, खानपान और देखभाल की सही जानकारी हो. इसी कारण मध्य प्रदेश और देशभर में मुर्रा भैंस की मांग बढ़ती जा रही है, क्योंकि यह दूध की मात्रा और क्वालिटी दोनों में सबसे आगे है.
दूध देने में सबसे भरोसेमंद- मुर्रा भैंस
भारत में कई नस्लों की भैंसें पाई जाती हैं, लेकिन मुर्रा भैंस को दूध देने की रानी कहा जाता है. किसान जब भी नई भैंस खरीदने जाते हैं, तो सबसे पहले पूछते हैं- कितना दूध देती है? और यह सवाल सबसे अच्छे जवाब के साथ मुर्रा भैंस ही देती है. इसका दूध न सिर्फ मात्रा में ज्यादा होता है बल्कि गाढ़ा और गुणवत्तापूर्ण भी होता है. इसलिए डेयरी उद्योग और छोटे किसान दोनों इसे अपनी पहली पसंद बनाते हैं. आज देश का लगभग 55 फीसदी दूध उत्पादन भैंसों से आता है, जिसमें सबसे बड़ा योगदान मुर्रा नस्ल का ही है.
भैंस चुनते वक्त नस्ल की पहचान सबसे जरूरी
भैंस खरीदते वक्त अक्सर लोग सिर्फ उसकी बॉडी देखकर ही फैसला कर लेते हैं, लेकिन असली बात उसकी नस्ल होती है. भारत में सुरती, जाफराबादी, मेहसाना, भदावरी, पंढरपुरी और चिल्का जैसी कई नस्लें पाई जाती हैं, लेकिन दूध के मामले में मुर्रा, जाफराबादी और मेहसाना सबसे भरोसेमंद मानी जाती हैं. नस्ल अच्छी होगी तभी दूध अच्छा और लगातार मिलेगा. इसलिए भैंस खरीदते समय उसके सींग, थन, शरीर की बनावट और पिछले रिकॉर्ड की जानकारी जरूर लेनी चाहिए.
दूध बढ़ता है सही खाना देने से, कम होता है गंदा खाना देने पर
भैंस का दूध सीधे-सीधे उसके खाने पर निर्भर होता है. अगर चारा कम या खराब है, तो दूध अपने-आप कम हो जाता है. एक भैंस का दिनभर का आहार लगभग 20-25 किलो का होता है, जिसमें हरा चारा, सूखा चारा और दाना-खली जरूर शामिल होनी चाहिए. भैंस को रेशे वाला दाना देना जरूरी होता है ताकि वह आसानी से पच सके. गंदा, सड़ा या दूषित चारा कभी नहीं देना चाहिए, वरना भैंस का पेट खराब हो सकता है और दूध कई दिनों तक कम हो जाता है. बड़ी बात यह है कि भैंस की उम्र के हिसाब से ही उसे आहार दिया जाए, ताकि उसकी सेहत और उत्पादन दोनों ठीक रहें.
अच्छी देखभाल मतलब ज्यादा दूध-यही है असली फॉर्मूला
भैंस चाहे किसी भी नस्ल की हो, अगर उसकी देखभाल सही हो तो दूध अपने-आप बढ़ जाता है. भैंस को रोज ताजा पानी मिलना चाहिए और उसके रहने की जगह साफ सुथरी होनी चाहिए. गर्मी में छाया जरूरी है और ठंड में गर्म बिछावन. अगर मौसम का ध्यान नहीं रखा गया, तो भैंस जल्दी बीमार हो सकती है. इसके अलावा, भैंस को नियमित नहलाना और उसके शरीर को साफ रखना भी बहुत जरूरी है, इससे वह आराम महसूस करती है और दूध बढ़ता है.
हर तीन महीने में जांच जरूरी, इससे बचती हैं बड़ी बीमारियां
अक्सर किसान भैंस की बीमारी तभी पहचानते हैं जब हालात बिगड़ चुके होते हैं. जबकि विशेषज्ञों के अनुसार, हर तीन महीने में भैंस की पेट संबंधी और शारीरिक जांच करवाना सबसे जरूरी है. समय रहते बीमारी का पता चल जाए तो इलाज आसान होता है और दूध उत्पादन पर असर भी कम पड़ता है. मुर्रा और अन्य अच्छी नस्लों में पेट की बीमारी और दूध रुकने की समस्या आम देखी जाती है, इसलिए डॉक्टर की सलाह नियमित लेते रहना जरूरी है. अगर किसान सही नस्ल चुने, भैंस को अच्छा भोजन दे और समय-समय पर उसकी जांच करवाते रहें, तो दूध की मात्रा बढ़ती है और कमाई भी दोगुनी हो जाती है. यही कारण है कि भैंस पालन आज सिर्फ जरूरत नहीं, बल्कि एक मजबूत व्यवसाय भी बन चुका है.