Stubble Burning: दिल्ली और आसपास के इलाकों की हवा फिर से जहरीली न हो, इसके लिए वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) ने बड़ा कदम उठाया है. अब सिर्फ किसान ही नहीं, बल्कि वे अधिकारी भी सजा के दायरे में आएंगे, जो पराली जलाने पर रोक लगाने में लापरवाही करेंगे. आयोग ने दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश की सरकारों को साफ आदेश दिया है कि पराली जलाने वाले किसानों के साथ-साथ इस पर काबू पाने में नाकाम रहने वाले जिला अधिकारियों पर भी कार्रवाई की जाएगी. अगर किसी क्षेत्र में पराली जलाई गई और वहां का अधिकारी कार्रवाई करने में फेल रहा, तो उसके खिलाफ सीधे कोर्ट में शिकायत दर्ज होगी.
क्या है पराली जलाने का मामला?
हर साल अक्टूबर-नवंबर में धान की कटाई के बाद किसान खेतों में बची पराली यानी फसल का सूखा हिस्सा जला देते हैं. इससे उन्हें अगली फसल बोने के लिए खेत जल्दी साफ मिल जाता है. लेकिन इसी जलती पराली का धुआं हवा में ऐसे जहरीले कण छोड़ता है जो दिल्ली-एनसीआर सहित कई शहरों की हवा को दमघोंटू बना देता है.
इस धुएं की वजह से लोग खांसी, सांस की तकलीफ, आंखों में जलन और कई गंभीर बीमारियों का शिकार हो जाते हैं. यही वजह है कि हर साल सर्दियों की शुरुआत होते ही पूरा उत्तर भारत धुंध और प्रदूषण की चादर में घिर जाता है.
आदेश में क्या कहा गया?
आयोग ने अपने आदेश में साफ लिखा है:-
- जिला कलेक्टर, उपायुक्त और मजिस्ट्रेट के पास पूरा अधिकार है कि पराली जलाने की घटना होने पर संबंधित अधिकारी या कर्मी के खिलाफ कोर्ट में केस दर्ज कराएं.
- अगर कोई अधिकारी या कर्मचारी पराली जलाने की घटनाओं को रोकने में ढिलाई बरतता है तो उसके खिलाफ भी कानूनी कार्रवाई होगी.
- इसरो (ISRO) द्वारा तैयार किए गए उपग्रह डेटा का इस्तेमाल कर खेतों में आग की रियल-टाइम निगरानी करना जरूरी होगा.
- धान की पराली जलाना पहले से ही कानून के तहत अपराध माना गया है, इसलिए अब इस पर किसी तरह की ढिलाई बर्दाश्त नहीं की जाएगी.
पंजाब और हरियाणा पर नजर क्यों?
सबसे ज्यादा पराली जलाने की घटनाएं पंजाब और हरियाणा में होती हैं. इन दोनों राज्यों में धान की खेती बड़े पैमाने पर होती है और कटाई खत्म होते ही किसान खेतों में आग लगा देते हैं. आयोग ने दोनों राज्यों की सरकारों को कड़े शब्दों में चेताया है कि वे अपनी कार्ययोजना को पूरी ताकत से लागू करें. जिले के प्रशासन पर लगातार नजर रखें और हर छोटी-बड़ी घटना पर तुरंत कार्रवाई करें.
सिर्फ किसान नहीं, अधिकारी भी जिम्मेदार
अब तक ज्यादातर मामलों में किसानों को चेतावनी या जुर्माना देकर छोड़ दिया जाता था. लेकिन इस बार आयोग का रुख काफी सख्त है. 17 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा था कि पराली जलाने वालों के खिलाफ गिरफ्तारी तक की कार्रवाई होनी चाहिए. इसके बाद 60 से ज्यादा अधिकारियों को कारण बताओ नोटिस भेजे गए, लेकिन किसी के खिलाफ कोर्ट में शिकायत दर्ज नहीं हुई. इसी को देखते हुए अब आयोग ने साफ कह दिया है- अगर अधिकारी काम नहीं करेंगे, तो वे भी सजा भुगतेंगे.
सुप्रीम कोर्ट भी रखेगा नजर
पराली जलाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट में अगले हफ्ते सुनवाई होनी है. कोर्ट पहले ही साफ कर चुका है कि इस बार कोई ढिलाई नहीं चलेगी. अगर सरकारें और अधिकारी सख्त कदम नहीं उठाते तो कोर्ट खुद हस्तक्षेप कर सकता है. हर साल सिर्फ कुछ हफ्तों की पराली के कारण करोड़ों लोग प्रदूषण झेलने को मजबूर होते हैं. सांस के मरीजों की संख्या बढ़ जाती है, अस्पतालों में मरीजों की भीड़ लग जाती है. बच्चे, बुजुर्ग और गर्भवती महिलाएं सबसे ज्यादा प्रभावित होती हैं. दिल्ली-एनसीआर गैस चेंबर बन जाता है, जिससे स्कूल बंद करने तक की नौबत आ जाती है. अगर अभी भी कड़ा कदम नहीं उठाया गया, तो आने वाले दिनों में हालात और बिगड़ सकते हैं.
समाधान क्या है?
सरकारें कई विकल्प पहले से ही दे रही हैं- पराली को खेत में मिलाने के लिए सुपर सीडर और हैप्पी सीडर जैसी मशीनें मुहैया कराई जा रही हैं. कई जगहों पर पराली से बायोफ्यूल, चारकोल और बिजली बनाने के प्रोजेक्ट भी चल रहे हैं. कुछ किसान पराली बेचकर भी कमाई कर रहे हैं. लेकिन असली बात है अनुशासन और निगरानी. जब तक नियमों को सख्ती से लागू नहीं किया जाएगा, तब तक हालात नहीं बदलेंगे.